Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ दिया करते थे, अतएव उन लोगों का उपदेश भी सफल होता था, उनकी "धर्मोपदेशो जनरंजनाय " ऐसी वागाडम्बर प्रतारणा नहीं थी, वे “मनस्येकं वचस्येकं कर्मस्येक महात्मनाम्” इन लक्षणों से युक्त रहते थे। साथ ही साथ प्राचीन आचार्य यह भी समझते थे कि यदि हम सच्चे आचार में नहीं रहेंगे यदि हम जैसे उपदेश देते हैं वैसे ही बर्ताव नहीं करेंगे तो हमारी शिष्य मन्डली एवं भक्तगण कैसे सुधरेंगे, इत्यादि कितने विचार किया करते थे । किन्तु आजकाल के श्राचार्य उपाध्याय एवं पंडित में "धर्मोपदेशो जन रंजनाय" के साथ “मनस्यन्यद् वचस्यन्यद् कर्मण्यन्यद्” पाये जाते हैं, अतएव हम लोंगो के उपदेशों का असर पत्थर पर पानी की तरह प्रायः हुआ करता है । इसी हेतु हमारा दिनानुदिन अधःपतन होता जा रहा है फिर भी हम जान बूझ कर अन्धे की तरह कुए में पड़ते जा रहे हैं । सच्चे हृदय से पक्षपात रहित होकर विचार किया जाय तो यह बात बिलकुल यथार्थ है कि जैसा कहें वैसा करने पर ही जनता पर प्रभाव पड़ सकता है अस्तु प्रकृतिमनुसरामः । एक समय बादशाह सभासदों को उपाध्याय शान्तिचंद्रजी से विद्वद गोष्ठी करने के लिये आदेश देकर स्वयं हीरसूरिजी से बात चीत करने के लिये एकान्त महल में चला गया । वहां बैठने के बाद अकबर ने 'कहा कि महाराज ! ईश्वर और खुदा में क्या भेद है ? वे कैसे हैं ? एक है या अनेक हैं ? और आत्मा का स्वरूप क्या है ? इत्यादि प्रश्न पूछने पर सूरिजी ने बड़ी मधुर ध्वनि से जवाब देना प्रारम्भ किया । जैसे किI ईश्वर खुदा में वास्तविक कोई भेद नहीं है । सिर्फ नाम मात्र काही भेद है । नाम का भेद भी जीवों के कल्याण के लिये ही है । क्योंकि "विचित्ररूपाः खलुचित्त वृत्तयः " जीवों की चित्त वृतियां अनेक प्रकार की हैं। कोई किसी नाम से खुश रहता है और कोई For Private and Personal Use Only

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