Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह है कि स्त्री जाति का स्पर्श मात्र नहीं करते हैं, एवं श्राप सदा सत्य ही बोलते हैं और न परिग्रह की मूर्छा रखते हैं, आप काम क्रोध लोभ मोह माया और राग द्वेप आदि का तो सर्वथा देश निकाला देकर क्षमा रूपी माता की गोदी में हमेशा रमते रहते हैं, इनसे अधिक समाचार आपके सहचर शिष्यों द्वारा मिल सकेंगे। इतना कहकर चुप होगया, कमाल नामका कर्मचारी मोदी की कही हुई बातों का समर्थन करता हुआ कहने लगा कि उपरोक्त बातें बिलकुल सही हैं, इसमें किसी तरह का मायाजाल नहीं है। अकबर बादशाह सूरिजी का संक्षिप्त यथार्थ चरित्र सुनकर आश्चर्य में पड़ता हुआ आपके त्याग पर मुग्ध होकर मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगा। इसी तरह समीपस्थ कर्मचारी वर्ग, क्षुब्ध होते हुए अद्भुत त्यागी पुरुष को देख देख कर धन्यवाद देने लगे। अहो! ये महात्मा मायावी नहीं हैं बल्कि साज्ञात खुदा के प्रतिबिम्ब तुल्य ही हैं । ऐसे महापुरुषों का दर्शन प्रबल भाग्योदय से ही हुआ करता है, आपके आने से आशा है कि हम लोगों के ही नहीं अपितु सारे शहर में अलौकिक अभ्युदय होने का पूर्ण सम्भव है। प्रिय पाठक ! प्राचार्य की कितनी आचार विशुद्धता थी। शासन संरक्षक प्रभावशाली एवं धुरन्धर आचार्य होने पर इस प्रकार की उग्र तपस्या करना क्या आश्चर्यजनक नहीं है ? किन्तु यह कहना चाहिये कि उन महात्माओं के अन्तःकरण में ही नहीं अपितु रोम रोम में वैराग्य भरा हुआ था, वो यह नहीं समझते थे कि अब हम आचार्य हो गये हैं अब तो हमें दुनिया खमा-खमा करेगी ही, मुझे प्रपंचों से क्या नफरत है, अब तो ऐश आराम करें किन्तु उन महा पुरुषों में इस प्रकार की स्वार्थ चेष्टा नहीं थी। वे ऐहिक सुखों को विष मिश्रित सुधा के समान समझ कर पारलौकिक सुखों को प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील रहते थे, वे लोग सच्चे हृदय से उपदेश For Private and Personal Use Only

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