Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ के कोने कोने में प्रसिद्ध है। अगर इस संसार में शिवाजी मराठा और महाराणा प्रताप न होते तो न मालूम हिंदू जाति की क्या दशा होती ? परन्तु हिंदू जाति का भाग्य उज्ज्वल था कि ऐसे महापुरुषों का समय पर जन्म हुआ और हिन्दू जाति का गौरव समुन्नत रखा। महाराणा प्रताप के नाम से तो अकबर हरवक्त सावधान रहता था। एक बार अकबर अपने टोडरमल आदि राजमंत्री के साथ बातचीत करता हुआ इधर देख रहा था । इतने में एक बड़ा भारी जुलुस राजमहल के नीचे होकर आगे निकला, जिसमें एक पालकी भी थी और श्री हीरविजयसूरिजी की जय हो ऐसे नारे लग रहे थे, अकबर ने आश्चर्य से समीपस्थ टोडरमल को पूछा, टोडरमल बोला कि जहांपनाह ! यह जुलुस जैन धर्म वालों का है, जिसमें एक चम्पा नामकी बाई सुन्दर वस्त्र धारण की हई पालकी में बैठ कर फलफूल लेकर के भगवत दर्शन के निमित्त मन्दिर में जा रही है। पालकी में बैठने का तात्पर्य यह है कि इस बाई नेछ: मास के उपवास किये हैं, इन उपवासों में केवल गर्म जल पीने के सिवाय और कुछ भी नहीं खाती, जल भी दिन में ही पीती है, रात को मुह में कोई भी चीज नहीं डालती है यह ५ वां मास है। और जैन धर्म का आज कोई पर्व विशेष है इसलिये उत्सव के साथ मन्दिर में जा रही है। बादशाह सारी बात को सुन कर आश्चर्य में पड़ गया परंतु ५ मास को तपस्या पर विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि एक तो बाई दूसरा ५ महीने का निराहार तप यह विरुद्ध मालूम हुआ । फिर अकबर ने अपने अनुचरों द्वारा कहलाया कि पालकी को ऊपर ले आओ, बादशाह की आज्ञा होते ही जैन समुदाय भयभीत होने लगा, किन्तु कर भी क्या सकता था ! आखिर पालकी को ऊपर ले जाया गया, बादशाह कुतुहळ से बाई की आकृति और वाणी से ध्यान पूर्वक परीक्षा करने लगा यद्यपि बाई के तेजस्वी वदन और निर्दोष वचन को देख सुन For Private and Personal Use Only

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