Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है सोना, चांदी, हीरा, पन्ना आदि हमारे लिये मिट्टी के ढेले के समान ही है और रात को खाना पीना हमारे लिये मांस और खून के समान है, अब ऐसी अवस्था में आपकी दी हुई चीजों को लेकर हम क्या करेंगे? खां साहब सूरिजी के कठोर नियमों को सुन कर चकित होते हुए मन ही मन भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे, अहो ! यह साधु, त्यागियों में शिरोमणि साक्षात् खुदा की मूर्ति है, इनके जैसा त्यागी महात्मा आज तक देखने में नहीं आया। इतना चितवन करने के बाद भेंट की हुई चीजों का पुनः आग्रह न करके अपने सैनिकों की संरक्षणता में शाही बाजे के साथ सूरिजी को नियत स्थान पर पहुँचा दिये। कुछ दिन अहमदाबाद में ठहर कर मोदी और कमाल नामक अकबर के प्रधान कर्मचारियों के साथ सूरिजी ने फतहपुर सीकरी की तरफ प्रयाण किया, रास्ते में पहले पट्टन नामक एक विशाल नगर आया उस नगर में विराजमान सूरिजी के ज्येष्ठ सहाध्यायी प्रखर पडित उपाध्याय श्री धर्मसागरजी तथा प्रधान पट्टधर विजयसेनसूरि आदि साधु मन्डल सहित सूरिजी के स्वागतार्थ नगर के बाहर उपस्थित हुए, उस गाँव के श्रावकों ने समारोह पूर्वक सूरिजी को नगर प्रवेश करवाया, ऐसे सुअवसर पर एक श्राविका ने बहुत रुपये खर्च कर बड़े भारी उत्सव के साथ कुछ प्रतिमायें सूरिजी के कर कमलों द्वारा प्रतिष्ठित करवाई, ७ दिन रह कर वयोवृद्ध श्री धर्मसागरजी को यहीं छोड़कर विजयसेन सूरि के साथ सूरि महाराज आगे बढे, सिद्धपुर पहुँचने पर विजयसेन सूरिजी को वापिस भेज दिया, आपकी सेवा में कृपारस कोष के कर्ता श्री शान्तिचंद्र पंडित रहने लगा। सूरि जी ने भी शान्तिचंद्र को सुयोग्य समझ कर सर्वदा के लिये साथ रहने की आज्ञा दे दी, और समीपस्थ उपाध्यायवर्य श्री विमल हर्ष For Private and Personal Use Only

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