Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करवाया और नगर के सुबेदार को बहकाया कि बच्चे की दीक्षा नहीं होनी चाहिये । इस पर सुबेदार ने भी अनेक उपद्रव मचाये। परन्तु गुरु कृपा से निष्फल गये, मगर श्रावक ने अपने बच्चे के लिये गुरुदेव से भी अपनी मायाजाल फैलाने का घाटा न रखा । अपने स्वार्थवश होकर गुरुदेव का भी अपमान कर दिया। परन्तु दीक्षा के बजाय शान्ति का जवाब भी नहीं दिया। किन्तु गुरुदेव के मन में लेश मात्र भी खेद नहीं हुआ। होवे भी क्यों ? दया के सागर एवं समदर्शी थे। सच्चे त्यागी और वैरागी थे। कुछ दिन प्रवचन देकर भव्य जीवों की मलीनता को मिटाते हुए सूरिजी कार्यवश वहां से विहार कर अहमदाबाद आ पहुँचे। अहमदाबाद श्रीसंघ यथोचित सत्कार करते हुए अपने को धन्य धन्य समझने लगा, क्योंकि सामैया में कुल २६ हजार रुपये खर्च किये, उस जमाने में। इधर शाहबुद्दीन ने सूरिजी का आगमन सुनकर आइर के साथ अपने शाही महल में बुलाकर अपने उत्तम हस्ती, अश्व, रथ और हीरा माणिक मोती आदि बहुमूल्य चीजें सूरिजी को भेंट करते हुए कहा कि हे सूरिराज ! मुझे स्वामी अकबर की आज्ञा है कि हीरविजयसूरिजी जो कुछ चाहें उन्हें भेंट कर मेरे पास आने की प्रार्थना करे । इसलिये आप इन चीजों को स्वीकार करके फतेहपुर सीकरी अकबर के दरबार में पधारने की कृपा करें, अकबर बादशाह आपको खुदा की तरह रातदिन स्मरण कर रहा है। __सूरीश्वरजी ने अपने साधु जीवन का परिचय देते हुए खां साहब से कहा कि राजन् ! संसार के प्राणी मात्र की रक्षा करने की भावना हमें सदैव रहती है, हमारे लिये मिथ्याभाषण करना पाप का बीज बोना है । बिना किसी से दी हुई चीज को लेना हमारे लिये विष कटोरे को उठाना है, संसार की स्त्रियां हमारे लिये माता बहन तुल्य For Private and Personal Use Only

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