Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हम दोनों पर अनुग्रह कीजिये, इतना कहने पर देवी को तीव्र उत्कण्ठा देख कर गुरु महाराज ने दोनों की पुनः पुनः परीक्षा करते हुए बालक की सर्व लक्षण सम्पन्नता, सहिष्णुता और अद्भुत भविष्णुता को देख कर दीक्षा का मुहूर्त श्रीसंघ को सूचित कर दिया, श्रावकगण महोत्सव बड़े धामधूमपूर्वक करने लगे। दीक्षा के दिन नाना प्रकार के आभूषणों से सज्जित करके गज पीठस्थ जयसिंह कुमार को नगर में चतुर्दिक्षु घुमाते हुए गुरु महाराज के चरण कमलों में ले गये। दर्शक जनों की भीड़ मधु मक्खियों की तरह होने लगी, नियत दीक्षा स्थान पर संवत् १६१३ ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी के रोज सुमुहूर्त में जयसिंह कुमार और उनकी जन्मदाता कोडिम देवी को गुरुवर श्रीमद् विजयदानसूरिजी ने श्रीसंघ के समक्ष दीक्षा देदी। जयसिंह का दीक्षित नाम जयविमल रखा । नूतन दीक्षित दीक्षा के समय : वर्ष के थे, आपने अल्प समय में ही पंच प्रतिक्रमण नवस्मरण साधु आवश्यक क्रिया जीव विचारादि प्रकरण तीन भाष्य कर्म ग्रन्थ क्षेत्र समासादि शास्त्रों का अध्ययन विद्या भंडार श्री विजयदानसूरिजी से कर लिया। एक दिन तपागच्छाधिपति विजयदानसूरिजी अपने मन ही मन विचार विमर्श करने लगे कि जयविमल सुशील विनीत एवं महाप्रतीभाशाली है यदि श्री हीरविजयसूरि के पास भेज दू तो श्राशा ही नहीं अपितु दृढ विश्वास है कि उनकी बराबरी की योग्यता को पालेगा, फिर मेरी भुजायें संसार में सूर्य चन्द्र की तरह दिन रात चमकने लगेंगी। ऐसा सोच कर के गुरु महाराज ने अविलम्ब जयविमल को चातुर्मास पूर्ण होते ही श्री हीरविजयसूरि के पास जाने की आज्ञा दे दी । जयविमल गुरुदेव को वंदना करने के बाद जब प्रयाण करने लगे तो उत्तमोत्तम लाभसूचक शकुन होने लगे। ___ क्यों न हो, महापुरुषों का चिन्ह है कि उनके पदार्पण के पहले ही आगे आगे आनंद मंगल की श्रेणी बढ़ने लगती है । तदनन्तर बड़े For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134