Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीक्षा श्री जिनसेविता च दलनी दुःखस्य शिक्षामयी। तांचे स्वीकुरुत प्रमोद जननी लोकाब्धि नावं जनाः ॥११॥ न च राज भयं न च चौर भयं । इह लोक हित परलोक सुखम् : नर देव नतं वर कीर्ति करं श्रमणत्वमिदं रमणीयतरम् ।।२।। अर्थ-दीक्षा मोह का विनाश करने वाली परम अभ्युदय को देने वाली, जीवात्माओं को पवित्र करने वाली, सकल संसार से माननीय जिनेश्वर भगवान से सेवित, दुःखों को निवारण करने वाली, विद्या मयी, और आनंद को देने वाली, संसार समुद्र में नौका रूप दीक्षा है अतः उसे सब प्राणियों को अपनाना चाहिये। साधुता में न तो राजकीय भय है न चोरी का भय है तथा इहलौकिक हित और पारलौकिक सुख मिलता है। साधुता की देव मनुष्य भी स्तुति करते हैं और साधुपना में कीर्ति बढ़ती है । साधुता परम रमणीय है। ___ हीरजी का दीक्षित नाम श्री मद्विजयदानसूरीश्वरजी ने हीरहर्ष मुनि रखा । हीरहर्ष मुनि सम्यक् प्रकार से तपस्या एवं रत्नत्रय की आराधना करते हुए परिशुद्ध आशय से गुरु चरणों की सेवा में लवलीन होते हुए गुरुदेव के पीछे छाया की तरह प्रति पलं रहने लगे। हीरहर्ष मुनि पांच महाव्रत तीन गुप्ति पांच समिति तथा करण सितरी चरण सितरी को पूरी तरह से पालन करते हुये उच्च शास्त्र का अध्ययन दत्तचित्त होकर करने लगे। गुरुदेव के समीप पढ़ते हुये थोड़े ही समय में शास्त्रों का सम्पूर्ण अध्ययन कर जैन सिद्धांत के धुरंधर विद्वान बन गये । पाठक देखिये, गुरु कृपा का फल ! गुरु कृपा जिस पर हो जाती है वह तो विद्वत्तापूर्ण वाक् शक्ति में अपूर्व ही बढ़ जाता है और संसार सागर उनके लिये सुगम हो जाता है। इसी तरह हीरहर्ष मुनि भी गुरु कृपा से सज्ञान का विकस्वर विशेष रूप से करने लगे। For Private and Personal Use Only

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