Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 13
________________ उमास्वामि-श्रावकाचार । ग-यांगशास्त्र ( श्वेताम्बरीय ग्रंथ ) से । " सरागोपि हि देवश्चेद्गुरुरब्रह्मचार्यपि : कृपाहीनोऽपि धर्मश्चेत्कष्टं नष्टं हहा जगत् ॥ १९ ॥ हिंसा विघ्नाय जायत विघ्नशांत्यै कृतापि हि। कुलाचारधियाप्येपा कृता कुलविनाशिनी ॥ ३३९ ॥ मांस भक्षपितामुन यस्य मांसमिहानायहम् । एतन्मांसस्य मांसत्वे निरुक्ति मनुरब्रवीत् ॥ २६५ ॥ उलूककाकमाारगृधशंवरशूकराः । . अहिवृश्चिकगोधाश्च जायंते रात्रिभोजनात् ॥ ३२६ ॥" ये चारों पद्य श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित 'योगशास्त्र' से लिये हुए मालूम होते हैं । इनमेंसे शुरूके दो पद्य योगशास्त्रके दूसरे प्रकाशमें ( अध्याय ) क्रमशः नं० १४-२९ पर और शेष दोनों पद्य, तीसरे प्रकाशमें नं० २६ और ६७ पर दर्ज हैं । तीसरे पद्यके पहले तीन चरणोंमें मनुस्मृतिके वचनका उल्लेख है। घ-विवेकविलास ( श्वे. ग्रंथ ) से । " आरभ्यैकांगुलादिम्बाद्यावदेकादशांगुलं। (उत्तरार्ध)१०॥ गृहे संपूजयेद्विम्बमूर्ध्वं प्रासादगं पुनः। प्रतिमा काष्ठलेपाश्मस्वर्णरुप्यायसां गृहे ॥ १०४॥ . मानाधिकपरिवाररहिता नैव पूजेयत् । (पूर्वार्ध)॥ १०५ ॥ प्रासादे ध्वजनिर्मुक्ते पूजाहोमजपादिकं । सर्व विलुप्यते यस्मात्तस्मात्कार्यों ध्वजोच्छ्रयः ॥ १०७ ॥ * १ विवेकविलासमें 'स्वर्णसन्यायसां' की जगह 'दन्तचित्रायसा' पाठ, दिया है।

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