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ग्रन्थ-परीक्षा।
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जिनसेनत्रिवर्णाचारमें यही पद्य तीसरे पर्वके अन्तमें दिया है। केवल 'सोमसेन' के स्थानमें उसीके वजनका 'जैनसेन' बनाया गया है । ' इसी प्रकार नामसूचक सभी पद्योंमें 'सोमसेन' की जगह 'जैनसेन' का परिवर्तन किया गया है। किसी भी पद्यमें 'जिनसेन' ऐसा नाम नहीं दिया है। जिनसेनत्रिवर्णाचारमें कुल १८ पर्व हैं और सोमसेनत्रिवर्णाचारके अध्यायोंकी संख्या १३ है । पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिनसेनत्रिवर्णाचारके इन १८ पौंमेसे जिन १३ पर्यों में सोमसेनत्रिवर्णाचारके १३ अध्यायोंकी प्राय: नकल की गई है, उन्हीं १३ पोंके अन्तमें ऐसे पद्य पाये जाते हैं जिनमें ग्रंथकर्ताका नाम 'सांमसेन' के स्थानमें 'जैनसेन' दिया है; अन्यथा शेष पांच पामें-ज़ो सोमसेन त्रिवर्णाचारसे अधिक हैं-कहीं भी ग्रंथक-.. का नाम नहीं है।
सोमसेन भट्टारकने, अपने त्रिवर्णाचारमें, अनेक स्थानों पर यह 'प्रगट किया है कि मेरा यह कथन श्रीब्रह्मसूरिके वचनानुसार है-उन्हींकें ग्रंथोंको देखकर यह लिखा गया है । जैसा कि निम्नलिखित पद्योंसे प्रगट होता है:
" श्रीब्रह्मसूरिद्विजवंशरत्नं श्रीजैनमार्गप्रविबुद्धतत्त्वः । वांचं तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं कृतं विशेषान्मुनिसोमसेनैः॥
(सोम० त्रि० ३-१४९) "कर्म प्रतीतिजननं गृहिणां यदुक्तं,श्रीब्रह्मसूरिवरविप्रकवीश्वरेण: सम्यक् तदेव विधिवत्पविलोक्य सूक्तं, श्रीसोमसेनमुनिभिः
शुभमंत्रपूर्वम् ॥” (सो० त्रि० अ० ५ श्लोक० अन्तिम) विवाहयुक्तिः कथिता समस्ता संक्षेपतः श्रावकधर्ममार्गात् । श्रीब्रह्मसूरिमथितं पुराणमालोक्य भट्टारकसोमसेनैः ॥ .
( सोम० त्रि० ११-२०४)