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जिनसेन-त्रिवर्णाचारः।
वाक्यमें जिस परिणयनावधिके कथनकी प्रतिज्ञा की गई है उसका पालन भी सारे प्रकरणमें कहीं नहीं किया गया । प्रकरणके अन्तमें लिखा हैं कि 'इति वर्णजातिविवेकप्रकणं समाप्तम् ।' __ इन सब बातोंसे साफ जाहिर है कि यह पूरा प्रकरण. याज्ञवल्क्या स्मृतिकी मिताक्षरा टीकासे चुराया गया है और इसमें शंखादिकके स्थानमें समन्तभद्रादि जैनाचार्योंका नाम डालकर लोगोंको धोखा दिया गया है।
(२) हिन्दूधर्मके ग्रंथोंमें, श्रीदत्त उपाध्यायका बनाया हुआ 'आचारादर्श' नामका एक ग्रंथ है । यह ग्रंथ गद्यपद्यमय है; और इसमें प्रायः जो कुछ भी वर्णन किया गया है वह सब हिन्दू धर्मके अनेक प्रसिद्ध शास्त्रों और ऋषिवचनोंके आधार पर, उनका उल्लेख करते हुए, किया गया है । दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिए कि यह ग्रंथ विषय-विभेदसे हिन्दुधर्मके प्राचीन आचार्योंके वचनोंका एक संग्रह है । इस ग्रंथमें 'शयनविधि' नामका भी एक विषय अर्थात् प्रकरण है । जिनसेनत्रिवर्णाचारके ११वें पर्वमें 'शयनविधि ' का यह सम्पूर्ण प्रकरण प्रायः ज्योंका त्यों उठाकर रक्खा हुआ है । त्रिवर्णाचारके बनानेवालेने इस प्रकरणको उठाकर रखनेमें बड़ी ही घृणित चालाकीसे काम लिया है। वह 'आचारादर्श' या उसके सम्पादकका नाम तो क्या प्रगट करता, उलटा उसने यहाँतक कूटलेखता की है कि जहाँ जहाँ इस प्रकरणमें: हिन्दूधर्मके किसी ग्रंथ या ग्रंथकारका नाम था, उस सबको बदलकर उसके स्थानमें प्राचीन जैनग्रंथ या किसी प्राचीन जैनाचार्यका नाम रख दिया है। और इस प्रकार हिन्दू ग्रंथोंके प्रमाणोंको जैनग्रंथो या जैना-. चार्योंके वाक्य बतलाकर सर्वसाधारणको एक बड़े भारी धोखेमें डाला है । जिनसेनत्रिवर्णाचारमें ऐसा अनर्थ देखकर हृदय विदीर्ण होता है और उन जैनियोंकी हालत पर बड़ी ही करुणा आती है जो ऐसे
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