Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 98
________________ अन्य-परीक्षा - २-मुहूर्तचिन्तामणिके इसी संस्कारप्रकरणके श्लोक नं. ५४ की 'प्रमिताक्षरा' टीकामें तथा च वसिष्ठः ऐसा लिखकर एक पद्य . इस प्रकार दिया है: "या चैत्रवैशाखसिता तृतीया माघस्य सप्तम्यथ फाल्गुनस्य। कृष्णो द्वितीयोपनये प्रशस्ता प्रोक्ता भरद्वाजमुनीन्द्रमुख्यैः॥' जिनसेन त्रिवर्णाचारके १२ वें पर्वमें, मुहूर्तचिन्तामणिके. श्लोक नं०५४ को देकर और उसकी टीकासे कुछ गद्य पद्यको नकल करते हुए, यह पय भी उद्धृत किया है । परन्तु उसके उद्धृत करनेमें. यह चालाकी कि गई है कि 'तथा च वसिष्ठः' की जगह ' अन्यः' ऐसा शब्द बना दिया है और अन्तिम चरणका, 'प्रोक्ता महावीरगणेशमुख्यैः ' इस रूपमें परिवर्तन कर दिया है, जिससे यह पद्य जैनमतका ही नहीं बल्कि महावीर स्वामी और गौतमगणधरका अथवा महावीरके मुख्यगणधर गौतमस्वामीका वचन समझा जाय। 'यहाँ ' तथा च वसिष्ठः' के स्थानमें 'अन्यः' बनानेसे पाठकगण स्वयं समझ सकते हैं कि त्रिवर्णाचारके कर्ताका अभिप्राय इस अन्यः । शब्दसे किसी अजैन ऋषिको सूचित करनेका नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह 'भरद्वाजमुनीन्द्र' के स्थानमें 'महावीरगणेश' ऐसा परिवर्तन करनेका कदापि परिश्रम न उठाता । इसी प्रकार उसने और स्थानों पर भी ' अन्यः,' 'अन्यमतं' या 'अपरमतं बनाया है। ३-उपर्युक्त श्लोक नं० ५४ की व्याख्या करते हुए, 'प्रमिताक्षरा' टीकामें, एक स्थानपर 'नैमित्तिका अनध्यायास्तु स्मृत्यर्थसारे' ऐसा . लिखकर कुछ गद्य दिया है । जिनसेन त्रिवर्णाचारमें भी वह सब गम ज्योंका त्यों नकल किया गया है। परन्तु उससे पहले 'नैमित्तिका अनध्याया भद्रबाहुसंहितासारे ऐसा लिखा है अर्थात् त्रिवर्णाचारके कर्ताने ' स्मृत्यर्थसार ' नामके एक हिन्दू ग्रंथके स्थानमें ९४

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