Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 104
________________ अन्थ-परीक्षा। "गोशकृद्विगुणं मूत्रं पयः स्यात्तच्चतुर्गुणम् । . धृतं तद्विगुणं प्रोक्तं पंचगव्ये तथा दधि। सौम्ये मुहूर्ते. संयुक्त पंचगव्यं तु यः पिबेत् । . . यावज्जीवकृतात्पापात् तत्क्षणादेव मुच्यते ॥” * . . . गोमयको, उनके यहां, साक्षात् यमुना और गोमूत्रको नर्मदा तीर्थ वर्णन किया है+ । विष्णुधर्मोत्तरमें गोमूत्रके स्नानसे सब पापोंका नाश होना लिखा है । यथाः गोमूत्रेण च यत्स्नानं सर्वाधविनिसूदनम्।' __ इसी प्रकार सूर्योपस्थापनादिक ऊपरका सारा कथन हिन्दुओंके अनेक ग्रंथोंमें पाया जाता है। जैनधर्मसे इस कथनका कोई सम्बन्ध नहीं मिलता, न जैनियोंके आर्ष ग्रंथोंमें ऐसा विधि विधान पाया जाता है और न जैनियोंकी प्रवृत्ति ही इस रूप देखनेमें आती है। - ३-नदियोंका पूजन और स्तवनादिक। जिनसेनत्रिवर्णाचारके चौथे पर्वमें, एक बार ही नहीं किन्तु दो बार, गंगादिक नदियोंको तीर्थदेवता और धर्मतीर्थ वर्णन किया है और साथ ही उन्हें अर्घ चढ़ाकर उनके पूजन करनेका विधान लिखा है। अर्ध चढ़ाते समय नदियोंकी स्तुतिमें जो श्लोक दिये हैं, उनमेंसे कुछ.. श्लोक इस प्रकार हैं: ... " पद्महदसमुद्भूता गंगा नाम्नी महानदी। . . . .: स्मरणाज्जायते पुण्यं मुक्तिलोकं च गच्छति ॥ . . . ...केसरीद्रहसंभूता रोहितास्या महापगा। . ... ... तस्याः स्पर्शनमात्रेण सर्वपापं व्यपोहति ॥ _ * देखो शब्दकल्पद्रुमकोशमें 'पंचगव्य' शब्द।' गोमयं यमुनासाक्षात् गोमूत्रं नर्मदा शुभा।' :.. . .

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