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ग्रन्थ- परीक्षा |
१ - मिट्टीकी स्तुति और उससे प्रार्थना । जिनसेनत्रिवर्णाचारके चौथे पत्र में, मृतिका स्नान के सम्बन्धमें, निम्नलिखित श्लोक दिये हैं:
" शुद्धतीर्थसमुत्पन्ना मृत्तिका परमाद्भुता । सर्वपापहरा श्रेष्टा सर्वमांगल्यदायिनी ॥ सिद्धक्षेत्रेषु संजाता गंगाकूले समुद्भवा । मृत्तिके हर ने पाप यन्मया पूर्वसंचितम् ॥ अनादिनिधना देवी सर्वकल्याणकारिणी । 'पुण्यसस्यादिजननी सुखसौभाग्यवर्द्धिनी ॥ "
इन श्लोकोंमें गंगा आदि नदियोंके किनारेकी मिट्टीकी स्तुति की गई है। और उसे सर्व पापोंकी हरनेवाली, समस्त मंगलोंके देनेवाली, सम्पूर्ण कल्याणोंकी करनेवाली, पुण्यको उपजानेवाली, और सुखसौभाग्यको - बढ़ानेवाली, अनादिनिधना देवी बतलाया है । दूसरे श्लोकमें उससे यह प्रार्थना की गई है कि ' है मिट्टी, तू मेरे पूर्वसंचित पापों को दूर कर दे, यह सब कथन जैनधर्मसे असंबद्ध है, और हिन्दू धर्मके ग्रथोंसे लिया.. हुआ मालूम होता है। जैनसिद्धान्तके अनुसार मिट्टी पापोंको हरनेवाली नहीं है और न कोई ऐसी चैतन्यशक्ति है जिससे प्रार्थना की जाय । हिन्दूधर्ममें मिट्टीकी ऐसी प्रतिष्ठा अवश्य है । हिन्दुओंके वह्निपुराण में स्नान के समय मृत्तिकालेपनका विधान करते हुए, मिट्टीसे यही पापोंक हरनेकी प्रार्थना की गई है। जैसा कि निम्नलिखित श्लोकोंसे प्रगट हैं: - “ उद्धृतासि वराहेण कृष्णेनामितवाहुना । मृत्तिके हर मे पापं यन्मया पूर्वसंचितम् ॥ मृत्तिके जहि मे पापं यन्मया दुष्कृतं कृतम् । त्वया हृतेन पापेन ब्रह्मलोकं व्रजाम्यहम् ॥”'*
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* देखो, शब्दकल्पद्रुम कोशमें 'मृत्तिका' शब्द '
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