Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 120
________________ अन्य-परीक्षा । . ... ये सब हिन्दुओंके. मंत्र हैं। और गारुड या मिताक्षरादि हिन्दू ग्रन्थोंसे उठाकर रक्खे गये हैं । इस प्रकार यह श्राद्धका सारा प्रकरण हिंदूधर्मसे लिया गया है। इतने पर भी त्रिवर्णाचारका कर्ता लिखता है कि मैं 'उपासकाध्ययन' में कही. हुई श्राद्धकी विधिको वर्णन करता हूँ । यथाः___“गणाधीशं श्रुतस्कंधमपि नत्वा विशुद्धितः ।.. श्रीमच्छ्राद्धर्विधि वक्ष्ये श्रावकाध्ययनोदिताम् ॥" यह सब लोगोंको धोखा दिया गया है । वास्तवमें, तर्पणकी तरह,श्राद्धका यह सब कथन जैनधर्मके विरुद्ध है। जैनधर्मसे. इसका कुछ. सम्बन्ध नहीं है । जैन सिद्धान्तके अनुसार ब्राह्मणोंको खिलाया हुआ भोजन या दिया हुआ अन्नादिक कदापि पितरोंके पास नहीं पहुँच सकता । और न ऐसा करनेसे देव पितरोंकी कोई तृप्ति होती है ।... ... . - ६-सुपारी खानेकी सज़ा । .... . जिनसेनत्रिवर्णाचारके ९वें पर्वमें लिखा है. कि, जो. कोई मनुष्य । पानको मुखमें न रखकर, अर्थात् पानसे अलग सुपारी ख़ाता है वह सात जन्म तक दरिद्री होता है और अन्त समयमें ( मरते वक्त.) उसको जिनेंद्र देवका स्मरण नहीं होता । यथाः-- . ___“अनिधाय मुखे पर्ण-पूर्ग खादति यो न : : . सप्तजन्मदरिद्रः स्यादन्ते नैव स्मरेजिनम् ॥ २३५ ॥ " : पाठकगण, देखा, कैसी धार्मिक न्याय है ! कहाँ तो अपराधं और. . कहाँ इतनी सख्त सज़ा! क्या जनियोंकी कमफिलासोफ़ी और जैन धर्मसे इसका कुछ सम्बन्ध हो सकता है ? कदापि नहीं। यह कथन हिन्दूधर्मके किसी ग्रंथसे लिया गया है । हिन्दुओंके स्मृतिरत्नाकर ग्रंथमें यह श्लोक बिलकुल ज्योंका त्यों पाया जाता है । सिर्फ अन्तिम

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