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अन्य-परीक्षा।
नामसे उल्लेख है। त्रिवर्णाचारके कर्ताका इन्हें श्रीसमंतभद्रस्वामीक वतलाना निरी धूर्तता है।
(ङ) इसी प्रकरणमें एक स्थान पर, 'विशेषमाहाकलंकः ऐसा • लिखकर, ये दो श्लोक दिये हैं:
" वृद्धः शौचक्रियालुप्तः प्रत्याख्यातभिषक्रियः। . आत्मानं घातयेद्यस्तु भृग्वग्न्यशनाम्बुभिः ।। तस्य त्रिरात्रमाशौचं द्वितीये त्वस्थिसंचयः।.
तृतीये तूदकं कृत्वा चतुर्थे श्राद्धमाचरेत् ॥" ये दोनों श्लोक 'अत्रि ऋषिके हैं और 'अत्रिस्मृति में नम्बर २१४ और २१५ पर दर्ज हैं। इन श्लोकोंमें लिखा है कि 'यदि कोई वृद्ध पुरुष जिसे शौचाशौचका कुछ ज्ञान न रहा हो और वैद्याने मी जिसकी चिकित्सा करनी छोड़ दी हो, गिरने या अनिमें प्रवेश करने आदिके द्वारा, आत्मघात करके मर जाय तो उसके मरनेका आशौच सिर्फ तीन दिनका होगा। दूसरे ही दिन उसकी हड्डियाँका संचय करना चाहिए और तीसरे दिन जलदान क्रिया करके चौथे दिन श्राद्ध करना चाहिए।' जिनसेनत्रिवर्णाचारका कर्त्ता हिन्दूधर्मके इन वचनोंको श्रीअकलंक स्वामीके बतलाता है, यह कितना घोसा है !! इसी प्रकार और बहुतसे स्थानों पर हिन्दु ऋषियोंकी जगहं गौतम और समंतभद्रादिके नामोंका परिवर्तन करके लोगोंको धोखा दिया गया है।
(४) पहले यह प्रगट किया जा चुका है कि हिन्दुओंके ज्योतिषग्रंथोंमें 'मुहूर्तचिन्तामणि' नामका एक ग्रंथ है और उस ग्रंथ पर 'प्रमिताक्षरा' और 'पीयूषधारा' नामकी दो संस्कृत १ अत्रिस्मृतिमें 'नियालुप्तः' के स्थानमें 'स्मृतेलृप्तः ' दिया है।