Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 92
________________ अन्थ-परीक्षा। १७ ३ पर्वका उपर्युक्त श्लोक नं० ४ और उससे पहलेके तीनों श्लोक तथा १८ वें पर्वका यह श्लोक नं० ३ और इससे आगेके कुल श्लोक सोमसेन त्रिवर्णाचारके १वें अध्यायसे ज्योंके त्यों नकल . किये गये हैं जिनसेनत्रिवर्णाचारके १७ वें अध्यायके पहले चार श्लोकोंको १८ वें पर्वके तीसरे श्लोक और उससे आगेके श्लोकोंके साथ मिला देनेसे सोमसेन त्रिवर्णाचारका पूरा १३ वा अध्याय बन जाता हैजिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताने सोमसेन त्रिवर्णाचारके १३ वें अध्यायको इस प्रकार दो भागोंमें विभाजित कर और उनके बीचमें व्यर्थ ही गद्यपद्यमय अशौचका एक लम्बा चौड़ा प्रकरण डालकर दोनों पाँमें बड़ी ही असमंजसता पैदा कर दी है। और इस असमंजसताके साथ ही एक बड़ा भारी अनर्थ यह किया है कि उक्त गद्यपद्यमय अशौच प्रकरणको प्राचीन जैनाचार्योंका बतलाकर लोगोंको धोखा दिया है। वास्तवमें यह प्रकरण किसी हिन्दूग्रंथसे लिया गया है । जिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताने जिस प्रकार और कई प्रकरण हिन्दूधर्मके ग्रथोंसे उठाकर रक्खे हैं, उसी प्रकार यह प्रकरण भी किसी हिंदूग्रंथसे ज्योंका त्यों नकल किया है। हिन्दुओंके धर्मग्रंथोंमें इसप्रकारके, आशौचनिर्णयके, अनेक । प्रकरण पाये जाते हैं, जिनमें अनेक ऋषियोंके हवालेसे विषयका विवे- . चन किया गया है। इस प्रकरणमें भी स्थान स्थान पर हिन्दू ऋषियोंके वचनोंका उल्लेख मिलता है। जिनसेनत्रिवर्णाचारके बनानेवालेने . यद्यपि इतना छल किया है कि हिन्दू ऋषियोंके नामोंके स्थानमें गौतम, भद्रवाहु, और समंतभद्रादि प्राचीन जैनाचायाँके नाम डाल दिये हैं और कहीं कहीं उनका नाम कतई निकाल भी दिया है, परन्तु फिर भी ग्रंथकर्ताकी असावधानी या उसकी नासमझीके कारण कई स्थानों पर कुछ हिन्दू ऋषियोंके नाम बदलने या निकालनेसे ८८

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