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जिनसेन-त्रिवर्णाचार।
रह गये हैं। इससे साफ जाहिर है कि यह प्रकरण किसी हिन्दू ग्रंथसे चुराया गया है । इस प्रकरणके कुछ नमूने इस प्रकार हैं:- . . .
(क) जिनसेनत्रिवर्णाचारमें आशौचका यह प्रकरण प्रारंभ करते हुए 'गौतम उवाच ' ऐसा लिखकर यह वाक्य दिया है:
"आचतुर्थाद्भवेत्स्रावः पातः पंचमपष्ठयोः ।
अत अर्ध्व प्रसूतिः स्यादिति" यह वाक्य मरीचि ऋपिका प्रसिद्ध है और 'आशौच निर्णय ' नामके बहुतसे प्रकरणोंकी आदिमें पाया जाता है । ' स्यात् ' शब्दके वाद इसका चौथा चरण है-'दशाहं सूतकं भवेत् । निर्णयसिंधु
और मिताक्षरादि ग्रंथोंमें भी इस वाक्यको मरीचि ऋषिके नामसे उद्धृत किया है । परन्तु त्रिवर्णाचारके कर्ताने इसे गौतमस्वामीका चतलाया है।
(ख) इस प्रकरणमें जो वाक्य विना किसी हवालेके पाये जाते हैं, उनमेंसे कुछ वाक्य इस प्रकार हैं:
" पितरौ चेन्मृतौ स्यातां दूरस्थोऽपि हि पुत्रकः ।
श्रुत्वा तदिनमारभ्य दशाहं मृतकी भवेत् ॥" यह वाक्य 'पैठीनसि ' ऋषिका है । मिताक्षरादि ग्रंथोंके आशौचप्रकरणमें भी इस पेठीनसिका ही लिखा है।
“आत्मपितृष्वसुः पुत्रा आत्ममातृप्वसुः सुताः। आत्ममातुलपुत्राश्च विज्ञेया आत्मबान्धवाः॥१॥ पितुः पितृष्वसुः पुत्राः पितुर्मातृष्वसुः सुताः पितुर्मातुलपुत्राश्च विज्ञेयाः पितृवान्धवाः ॥२॥ मातुः पितृण्वसुः पुत्रा मातुर्मातृष्वसुः सुताः। मातुर्मातुलपुत्राश्च विज्ञेया मातृवान्धवाः ॥३॥"