Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 64
________________ ग्रन्थ-परीक्षा-1.. किसी ग्रंथ या पुराणको देखकर इस त्रिवर्णाचारके ये तीनों पर्व लिखे हैं। श्रीगौतमस्वामीका बनाया हुआ कोई भी ग्रंथ जैनियोंमें प्रसिद्ध नहीं है । श्रीभूतबलि आदि आचार्यों के समयमें भी,-जिस वक्त ग्रंथोंके लिखे जानेका प्रारंभ होना कहा जाता है-गौतम स्वामीन बनाया हुआ कोई ग्रंथ मौजूद न था और न किसी प्राचीन आचार्यके ग्रंथमें उनके बनाये. हुए ग्रंथोंकी कोई सूची मिलती है । हाँ, इतना कथन जरूर पाया जाता है कि उन्होंने द्वादशांगसूत्रोंकी रचना की थी । परन्तु वे सूत्र भी लगभग दो हज़ार वर्षका समय हुआ तब लुप्त हुए कहे जाते हैं। फिर नहीं मालूम जिनसेन त्रिवर्णाचारके कर्ताका गौतमस्वामीके बनाये हुए कौनसे गुप्त ग्रंथसे साक्षात्कार हुआ था, जिसके आधार पर उन्होंने यह त्रिवर्णाचार या इसका ४ था, ७ वाँ और १५ वाँ पर्व लिखा है। इन पर्वोको तो देखनेसे ऐसा मालूम होता है कि इनमें आदिपुराण, पद्मपुराण, एकीभावस्तोत्र, तत्त्वार्थसूत्र, पद्मनंदिपंचविंशतिका, नित्यमहायोत, जिनसंहिता और ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचारादिक तथा अन्यमतके बहुतसे ग्रंथोंके गद्यपद्यकी एक विचित्र खिचड़ी पकाई गई है । अस्तु, परिवर्तनादिककी इन सब बातोंसे साफ जाहिर है कि यह ग्रंथ सोमसेनत्रिवर्णाचारसे . अर्थात् विक्रमसंवत् १६६५ से भी पीछेका बना हुआ है । - वास्तवमें, ऐसा मालूम होता है कि ग्रंथकर्ताने सोमसेनत्रिवर्णाचारको लेकर और उसमें बहुतसा मजमून इधर उधरसे. मिलाकर उसका नाम 'जिनसेनत्रिवर्णाचार' रख दिया है । अन्यथा, जिनसेन त्रिवर्णाचारके कर्ता महाशयमें एक भी स्वतंत्र श्लोक बनानेकी योग्य-. . ताका अनुमान नहीं होता। यदि उनमें इतनी योग्यता होती, तो क्या वे पाँच पर्वोमेंसे एक भी पर्वके अन्तमें अपने नामका कोई पद्य न देते. और मंगलाचरण भी दूसरे ही ग्रंथसे उठाकर रखते ? कदापि नहीं। उन्हें सिर्फ दूसरोंके पयोंमें कुछ नामादिका परिवर्तन करना ही आता. .

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