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जिनसेन-त्रिवर्णाचार। से कितने पीछेका बना हुआ है और किसने बनाया है, इतना सवाल अभी और बाकी रह गया है। __ जैनसिद्धान्तभास्करद्वारा प्रकाशित हुई और पुष्करगच्छसे.सम्बन्ध रखनेवाली सेनगणकी पट्टावलीको देखनेसे मालूम होता है कि भट्टारक श्रीगुणभद्रसूरिके पट्ट पर एक 'सोमसेन' नामकं भट्टारक हुए हैं। सोमसेनत्रिवर्णाचारमें भट्टारक सोमसेन भी अपनेको पुष्करगच्छमें गुणंभद्रसूरिके पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए बतलाते हैं। इससे पट्टावली और त्रिव
र्णाचारके कथनकी समानता पाई जाती है । अर्थात् यह मालूम होता है कि पट्टावलीमें गुणभद्रके पट्ट पर जिन सोमसेन भट्टारकके प्रतिष्ठित होनेका कथन है उन्हींका ' सोमसेन त्रिवर्णाचार' बनाया हुआ है। इन सोमसेनके पट्ट पर उक्त पट्टावलीमें जिनसेन भहारकके प्रतिष्ठित होनेका कथन किया गया है । हो सकता है कि जिनसेनत्रिवर्णाचार उन्हीं सोमसेन भट्टारकके पट्ट पर प्रतिष्ठित होनेवाले जिनसेन भट्टारकका निर्माण किया हुआ हो और इस लिए विक्रमकी १७ वीं शताब्दीके अंतमें या १८ वीं शताब्दकि आरंभमें इस ग्रंथका अवतार हुआ हो। परन्तु पट्टावलीमें उक्त जिनसेन भट्टारककी योग्यताका परिचय देते हुए लिखा है कि, वे महामोहान्धकारसे ढके हुए संसारके जनसमूहोंसे दुस्तर कैवल्य:मार्गको प्रकाश करनेमें दीपकके समान थे और बड़े दुर्धर्ष नैय्यायिक, कणाद, वैय्याकरणरूपी हाथियोंके कुंभोत्पाटन करनेमें लम्पट बुद्धिवाले थे, इत्यादि । यथाः
“ तत्पट्टे महामोहान्धकारतमसोपगूढभुवनभवलमजनताभिडस्तरकैवल्यमार्गप्रकाशकदीपकानां, कर्कशतार्किककणादवैय्याकरणबृहत्कुंभिकुंभपाटनलम्पटधियां निजस्वस्याचरणंकणखंजायिनचरणयुगादेकाणां श्रीमद्भट्टारकवंयसूर्यश्रीजिनसेनभट्टारकाणाम् ॥ ४८॥"
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