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जिनसेन-त्रिवर्णाचार। .
जिनसेन-त्रिवर्णाचारमें 'सोमसेनत्रिवर्णाचार' प्रायः ज्योंका त्यों उठाकर रक्खा हुआ है । ' कई पर्व इस ग्रंथमें ऐसे हैं जिनमें सोमसेन निवर्णाचारके अध्याय मंगलाचरणसहित ज्योंके त्यों नकल किये गये हैं। 'सोमसेनत्रिवर्णाचारकी श्लोकसंख्या, उसी ग्रंथमें, अन्तिम पद्यद्वारा, दो हज़ार सातसौ ( २७००)श्लोक प्रमाण वर्णन की है 'इस संख्यामेंसे सिर्फ ७२ पद्य छोड़े गये हैं और बीस बाईस पद्योंमें कुछ थोड़ासा नामादिकका परिवर्तन किया गया है, शेष कुल पन जिनसेनत्रिवर्णाचारमं ज्योंके त्यों, जहाँ जब जीमें आया, नकल कर दिये हैं।
सोमसेनत्रिवर्णाचारमें, प्रत्येक अध्यायके अन्तमें, सोमसेन भट्टारकने पद्यमें अपना नाम दिया हैं ' इन पोंको जिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताने कुछ कुछ बदल कर रक्खा है 'जैसा कि नीचेके उदाहरणोंसे प्रगट . होता है:(१)"धन्यः स एव पुरुषः समतायुतो यः ।
प्रातः प्रपश्यति जिनेंद्रमुखारविन्दम् ॥ पूजासु दानतपसि स्पृहणीयचित्तः । सेव्यः सदस्सु नृसुरैर्मुनिसोमनैः ॥
(सोमसेन त्रि० अ० १ श्लो० ११६) जिनसेनत्रिवर्णाचारके दुसरे पर्वमें यही पद्य नम्बर ९२ पर दिया है, सिर्फ 'मुनिसोमसेनः' के स्थानमें 'मुनिजैनसेनैः' बदला हुआ हैं। (२) शौचाचारविधिः शुचित्वजनकः प्रोक्तो विधानागमे
पुंसां सद्रतधारिणां गुणवतां योग्यो युगेऽस्मिन्कलौ ॥ श्रीभट्टारकसोमसेनमुनिभिः स्तोकोऽपि विस्तारतः यः क्षत्रियवेश्यविप्रमुखकृत् सर्वत्र शूद्रोऽप्रियः ॥ .
(सोम० त्रि. अ० २ श्लो० ११५)