Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 39
________________ कुन्दकुन्द-श्रावकाचार। - विषयका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता, जिससे निश्चय किया जायं कि यह ग्रंथ वास्तवमें भगवत्कुंचकुंदाचार्यका ही बनाया हुआ है । कुंदकुंदस्वामीके बाद होनेवाले किसी भी माननीय आचार्यकी कृतिमें इस श्रावकाचारका कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता; प्रत्युत इसके, विवेकविलासका उल्लेख ज़रूर पाया जाता है। जिनदत्तरिके समकालीन या उनसे कुछ ही काल बाद होने वाले वैदिकधर्मावलम्बी विद्वान् श्रीमाधवाचार्य ने अपने 'सर्वदर्शनसंग्रह' नामके ग्रंथमें विवेकविलासका उल्लेख किया है और उसमें बौद्धदर्शन तथा आहेतदर्शनसम्बंधी २३ श्लोक विवेकविलास और जिनदत्तसूरिके हवालेसे उधृत किये हैं। ये सब श्लोक कुन्दकुन्दश्रावकाचारमें भी मौजूद हैं। इसके सिवा विवेकविलासकी एक चारसो पाँचसो वर्षकी लिखी हुई प्राचीन प्रति बम्बईके जैनमंदिरमें मौजूद है । परन्तु कुंदकुंदश्रावकाचारकी कोई प्रचीन प्रति नहीं मिलती । इन सब बातोंको छोड़ कर, खुद ग्रंथका साहित्य भी इस बातका साक्षी नहीं है कि यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ है। कुंदकुंदस्वामीकी लेखनप्रणाली-उनकी कथन शैली-कुछ और ही ढंगकी है; और उनके विचार कुछ और ही छटाको लिये हुए होते हैं । भगवत्कुंदकुंदके जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हुए हैं, वे सब प्राकृत भाषामें हैं। परन्तु इस श्रावकाचारकी भाषा संस्कृत है; समझमें नहीं आता कि जब भगवत्कंदकुंदने बारीकसे बारीक, गढ़से गढ़ और सुगम ग्रंथोंको भी प्राकृत भाषामें रचा है, जो उस समयके लिए उपयोगी भाषा थी, तब वे एक इसी, साधारण गृहस्थोंके लिए बनाये हुए, ग्रंथको • देखो ' सर्वदर्शनसंग्रह ' पृष्ठ ३८-७२ श्रीव्येकटेश्वरछापाखाना कम्बई द्वारा संवत् १९६२ का छपा हुआ। : * विवेकविलासकी इस प्राचीन प्रातका समाचार अभी हालमें मुझे अपने एक मित्रद्वारा मालूम हुआ है।

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