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जिनसेन-त्रिवर्णाचार ।
इस त्रिवर्णाचारका दूसरा नाम 'उपासकाध्ययनसारोद्धार
भी है; ऐसा इस ग्रंथकी प्रत्येक संधिसे प्रगट होता है। यह ग्रंथ किस समय बना है और किसने बनाया है, इसका पृथकरूपसे कोई स्पष्टोलेस इस ग्रंथम किसी स्थान पर नहीं किया गया है। कोई ' प्रशस्ति' भी इस ग्रंथके साथ लगी हुई नहीं है। ग्रंयकी संधियोंमें ग्रंथकर्ताका नाम कहीं पर 'श्रीजिनसेनाचार्य' कहीं 'श्रीभगवाज्जनसेनाचार्य' कहीं श्रीजिनसेनाचार्य नामांकित विद्वज्जन' और कहीं ' श्रीभट्टारकवर्य जिनसेन' दिया है। इन संधियोमसे पहली संधि इस प्रकार है:__" इत्या श्रीमद्भगवन्मुखारविंदाद्विनिर्गते श्रीगौतमार्षपदपझाराधकेन श्रीजिनसेनाचार्येण विरचितेत्रिवर्णाचारे उपासकाध्ययनसारोद्धारे श्रीश्रेणिकमहामंडलेश्वरप्रश्नकथनश्रीमवृषभदेवस्य पंचकल्याणकवर्णनद्विजोत्पत्तिभरतराजदृष्टषोडशस्वप्नफलवर्णनं नाम प्रथमः पर्वः। . संधियोंको छोड़कर किसी किसी पर्वके अन्तिम पोंमें ग्रंथक
का नाम 'मुनि जैनसेन ' या 'भट्टारक जैनसेन' भी लिखा है। परन्तु इस कोरे नामनिर्देशसे इस वातका निश्चय नहीं हो सकता कि यह ग्रंथ कौनसे 'जिनतेन' का बनाया हुआ है। क्योंकि जैन समाजमें 'जिनसेन' नामके धारक अनेक आचार्य और ग्रंथकर्ता हो गये हैं । जैसा कि आदिपराण और पार्वाभ्युदय आदि ग्रंथोंके प्रणेता भगवजिनसेन; हरिवंश पुराणके रचयिता दूसरे जिनसेन; हरिवंपुराणकी 'प्रशिस्त' में जिनका ज़िकर है वे तीसरे जिनसेन
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