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अन्य-परीक्षा।
हासो रत्यरती रागद्वेषावविरतिः स्मरः । शोको मिथ्यात्वमेतेऽधादशदोषा न यस्य सः ॥ २४२॥"
अठारह दोपोंके थे नाम श्वेताम्बर जैनियों द्वारा ही माने गये हैं। प्रसिद्ध श्वेताम्बर साधु आत्मारामजीने भी इन्हीं अठारह दोषोंका उल्लेख अपने 'जैनत्त्वादर्श' नामक ग्रंथके पृष्ठ ४ पर किया है । परन्तु दिगम्बर जैन सम्प्रदायमें जो अठारह दोष माने जाते हैं और जिनका बहुतसे दिगम्बर जैनग्रंथों में उल्लेख है उनके नाम इस प्रकार हैं:
“१ क्षुधा, २ तृषा, ३ भय, ४ द्वेष, ५ राग, ६ मोह, ७ चिन्ता, ८ जरा, ९ रोग, १० मृत्यु, ११ स्वेद, १२ खेद, १३ मद, १४ रति, १५ विस्मय, १६ जन्म, १७ निद्रा, और १८ विषाद।"
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंकी इस अष्टादशदोषोंकी नामावलीमें बहुत बड़ा अन्तर हैं । सिर्फ निद्रा, भय, रति, राग और द्वेष ये पाँच दोष ही दोनोंमें एक रूपसे पाये जाते हैं। बाकी सब दोषोंका कथन परस्पर भिन्न भिन्न है और दोनोंके भिन्न भिन्न सिद्धान्तोंपर अबलम्बित है। इससे निःसन्देह कहना पड़ता है कि यह ग्रंथ स्वेतांवर सम्प्रदायका ही है। दिगम्बरोंका इससे कोई सम्बंध नहीं है।
और श्वेताम्बर सम्प्रदायका भी यह कोई सिद्धान्त ग्रंथ नहीं है, बल्कि मात्र विवेकविलास है, जो कि एक मंत्रीसुतकी प्रसन्नताके लिए बनाया गया था । विवेकविलासकी संधियाँ और उसके उपर्युल्लिखित दो पयों (नं० ३,९) में कुछ ग्रंथनामादिकका परिवर्तन करके ऐसे किसी व्यक्तिने, जिसे इतना भी ज्ञान नहीं था कि, दिगम्बर और श्वेताम्बरों 'द्वारा माने हुए अठारह दोषोंमें कितना भेद है, विवेकविलासका नाम 'कुन्दकुन्दश्रावकाचार' रक्खा है। और इस तरह पर इस नकली श्रावकाचारके द्वारा साक्षी आदि अपने किसी विशेष प्रयोजनकी सिद्ध करनेकी चेष्टा की है। अस्तु । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जिस