Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 49
________________ कुन्दकुन्द-श्रावकाचार। व्यक्तिने यह परिवर्तनकार्य किया है यह बड़ा ही धूर्त और दिगम्बर जनसमाजका शफा था । परिवर्तनका यह कार्य कब और कहाँपर हुआ है इसका मुझे अभी तक ठीक निश्चय नहीं हुआ । परन्तु जहाँतक मैं समझता हूँ इस परिवर्तनको कुछ ज्यादा समय नहीं हुआ है और इसका विधाता जयपुर नगर है। अन्तम जैन विद्वानांन मेरा सविनय निवेदन है कि यदि उनमेसे फिसीके पास कोई ऐसा प्रमाण मौजूद हो, जिससे यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंद्रका बनाया हुआ सिद्ध हो सके तो वे खुशीसे बहुत शीघ्र उसे प्रकाशित कर देखें । अन्यथा उनका यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि जिस भंटारमें या ग्रंथ मौजूद हो, उस ग्रंथपर लिख दिया जाय कि 'यह ग्रंथ भगवत् फुदकुंदस्वामीका बनाया हुआ नहीं है। बल्कि वास्तवमं यह श्वेताम्बर जैनियोंका 'विवेकविलास' ग्रंथ है। किसी धूर्तने ग्रंथकी संधियों और तीसरे व नौवें पद्यम ग्रंथ नामादिकका परिवर्तन करके इसका नाम ' कुन्दकुन्दश्रावकाचार' रख दिया है साथ ही उन्हें अपने भंडारोंके दूसरे ग्रंथोंको भी जाँचना चाहिए और जांच के लिए दूसरे विद्वानोंको देना चाहिए। केवल वे हस्तलिखित भंडारोंमें गज़द है और उनके साथ दिगम्बराचार्योका नाम लगा हुआ है, इतनेपरसे ही उन्हें दिगम्बर-कपि-प्रणीत न समझ लें। उन्हें खूब समझ लेना चाहिए कि जैन समाजमें एक ऐसा युग भी आ चुका है जिसमें कपायवश प्राचीन आचायोंकी कीर्तिको कलंकित करनेका प्रयत्न किया गया है और अब उस कीर्तिको सुरक्षित रखना हमारा खास काम है । इत्यलं विज्ञेषु । देववंद्र जि० सहारनपुर । ता० १७-२-१४ । ४५

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