Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ जिनसेन-त्रिवर्णाचार। - - यह गाथा गोम्मटसारमें नम्बर १६ पर दर्ज है। गोम्मटसार ग्रंथ श्रीनेमिचंद्रसिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है; जो कि महाराजा चामुंडरायके समयमें विक्रमकी ११ वीं शताब्दीमें हुए हैं। इससे भी या विवर्णचार भगवजिनसेनादिसे बहुत पीछेका बना हुआ सिद्ध होता है। (४) इस ग्रंथके चौथ पर्वमें, एक स्थानपर ग्रन्यांको और दूसरे स्थानपर ऋपियोंको तर्पण किया है । ग्रंथोंके तर्पणमें आदिपुराण, उनापुगण, हरिवंशपुराण, और गोम्मटसारको भी अलग अलग तर्पण किया है। पियोंके तर्पणमें प्रथम तो लोहाचार्यके पश्चात् 'जिनसेन' को तर्पण किया है (जिनसनम्तृप्यता); फिर वीरसेनके पश्चात् •मिनसेन' का तर्पण किया है और फिर नेमिचन्द्र तथा गुणभद्राचार्यका भी तर्पण किया है । १० व पर्वमें जिनसेन मुनिकी स्तुति भी लिसी में और चौथे पर्वके एक श्लोकमें जिनसेनका हवाला दिया है। यथाः. "सफलवस्तुविकाशदिवाकरं भुविभवार्णवतारणनौसमं । सुरनरप्रमुखैरुपसेवितं मुजिनसेनमुनिं प्रणमाम्यहम् ॥१०-२॥ याचिकस्त्वेक एव स्यादुपांशुः शत उच्यते। सहनमानसः प्रोक्तो जिनसेनादसरिभिः ॥४-१३३॥ इस सब कथनसे भी यही प्रगट होता है कि यह ग्रंथ भगवज्जिनसेन या हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेनका बनाया हुआ नहीं है । भगवजिनसेनके समयमें आदिपुराण अधूरा था, उत्तरपुराणका बनना प्रारंभ भी नहीं हुआ था और गोम्मटसार तथा उसके रचयिता श्रीनेमिचंद्रका आस्तित्व ही न था। (५) इस ग्रंथमें अनेक स्थानों पर एकसंधि भट्टारककृत 'जिनसंहिता' से सैकड़ों श्लोक उठाकर ज्योंके त्यों रक्खे हुए हैं । एक स्था ५१.

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123