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कुन्दकुन्द-श्रावकाचार।
विचार, गुरुशिष्यलक्षण और उनका व्यवहार; कौन कौन विद्यायें और कलायें सीसनी; विषलक्षण तथा सादिकके छूनेका निषेध; संपादिकसे उसे हुए मनुप्यके विष दूर होने न होने आदिका विचार और चिकित्सा (९८श्लोकोंमें); पदर्शनोंका वर्णन; सविवेक-वचनविचार; किस किस वस्तुको देखना और किसको नहीं; दृष्टिविचार और नेत्रस्वरूपविचार, . चलने फिरनेका विचार नीतिका विशेपोपदेश; (६५ श्लोकोंमें ) पापके काम और क्रोधादिके त्यागका उपदेश; धर्म करनेकी प्रेरणा; दान, शील, तप और १२ भावानओंका संक्षिप्त कथन; पिंढस्थादिध्यानका उपदेश; ध्यानकी साधकसामग्री; जीवात्मासंबंधी प्रश्नोत्तर, मृत्युविचार और विधिपूर्वक शरीरत्यागकी प्रेरणा।"
यही सब इस ग्रंथकी संक्षिप्त विषय-सूची है। संक्षेपसे, इस ग्रंथमें सामान्य नीति, वैद्यक, ज्योतिप, निमित्त, शिल्प और सामुद्रिकादि शास्त्रोंके कथनोंका संग्रह है। इससे पाठक खुद समझ सकते हैं कि यह ग्रंथ असलियतमें 'विवेकविलास' है या.' श्रावकाचार' । यद्यपि इस विषयसूचीसे पाठकोंको इतना अनुभव ज़रूर हो जायगा कि इस प्रकारके कथनोंको लिये हुए यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ नहीं हो सकता । क्योंकि भगवत्कुंदकुंद एक ऊँचे दर्जेके आत्मानुभवी साधु
और संसारदेहभोगोंसे विरक्त महात्मा थे और उनके किसी भी प्रसिद्ध ग्रंथसे उनके कथनका ऐसा ढंग नहीं पाया जाता है । परन्तु फिर भी इस नाममात्रके श्रावकाचारके कुछ विशेष कथनोंको, नमूनेके तौरपर नीचे दिसलाकर और भी अधिक इस बातको स्पष्ट किये देता हूँ कि यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ नहीं है:- .
(१) भगवत्कुंदकुंदाचार्यके ग्रंथों में मंगलाचरणंके साथ या उसके अनन्तर ही ग्रंथकी प्रतिज्ञा पाई जाती है और ग्रंथका फल तथा आशीदि, यदि होता है तो वह, अन्तमें होता है। परन्तु इस ग्रंथके कयनका