Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ उमस्वामि-श्रावकाचार। का कथन समाप्त करनेके बाद ग्रंथकार इससे पहले आयके दो शिक्षाव्रतों ( सामायिक-प्रोपधोधपवास) का स्वरूप भी दे चुके हैं । अब यह तीसरे शिक्षावतके स्वरूपकथनका नम्बर था, जिसको आप ' गुणवत' लिख गये ! कई आचार्योंने भोगोपभोगपरिमाण व्रतको गुणव्रतामें माना है। मालूम होता है कि यह पद्य किसी ऐसे ही ग्रंथसे लिया गया है, जिसमें भोगोपभोगपरिमाण व्रतको तीसरा गुणवत वर्णन किया है और ग्रन्थकार इसमें शिक्षाव्रतका परिवर्तन करना भूल गये अथवा उन्हें इस वातका स्मरण नहीं रहा कि हम शिक्षाबतका वर्णन कर रहे हैं। योगशास्त्रमें भोगोपभोगपरिणामवतको दूसरा गुणवत वर्णन किया है और उसका स्वरूप इस प्रकार लिखा है भोगोपभोगयोः संख्या शक्त्या यत्र विधीयते। · भोगोपभोगमानं तद्वैतीयीकं गुणवतम् ॥ ३-४॥ यह पद्य ऊपरके पद्यसे बहुत कुछ मिलता जुलता है । संभव है कि . इसीपरसे ऊपरका पद्य बनाया गया हो और ' गुणवतम् ' इस पदका 'परिवर्तन करना रह गया हो । इस ग्रंथके एक पद्यमें 'लोच' का कारण भी वर्णन किया गया है। • वह पद्य इस प्रकार है: "अदैन्यवैराग्यकृते कृतोऽयं केशलोचकः। यतीश्वराणां वीरत्वं व्रतनैमल्यदीपकः ॥ ५॥ इस पद्यका ग्रन्थमें पूर्वोत्तरके किसी भी पद्यसे कुछ सम्बन्ध नहीं है। न कहीं इससे पहले लोंचका कोई जिकर आया और न ग्रन्थमें इसका कोई प्रसंग है । ऐसा असम्बन्ध और अप्रासंगिक कथन उमास्वामी महासजका नहीं हो सकता । ग्रन्थकर्त्ताने कहाँपरसे यह मजमून लिया है और किस प्रकारसे इस पद्यको यहाँ देनमें गलती खाई है, ये सब बातेंज़रूरत होनेपर, फिर कभी प्रगट की जायेगी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123