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एमास्वामि-श्रावकाचार।
लिये हलायुधजीने, अपनी भाषाटीकाके अन्तमें, इस श्रावकाचारको
“ पूजाप्रकरण नाम श्रावकाचार" लिखा है। ___ अन्तमें विद्वज्जनोंसे मेरा सविनय निवेदन है कि वे इस ग्रंथकी अच्छी तरहसे परीक्षा करके मेरे इस उपर्युक्त कथनकी जाँच करें और इस विषयमें उनकी जो सम्मति स्थिर होवे उससे, कृपाकर मुझे सूचित करनेकी उदारता दिखलाएँ । यदि परीक्षासे उन्हें भी यह ग्रंथ सूत्रकार भगवान् उमास्वामिका बनाया हुआ साबित न होवे, तब उन्हें अपने उस परीक्षाफलको सर्वसाधारणपर प्रगट करना चाहिए । और इस तरहपर अपने साधारण भाइयोंका भ्रम निवारण करते हुए प्राचीन आचार्योंकी उस कीर्तिको संरक्षित रखनेमें सहायक होना चाहिये, जिसको कषायवश किसी समय कलंकित करनेका प्रयत्न किया गया है।
आशा है कि विद्वज्जन मेरे इस निवेदनपर अवश्य ध्यान देंगे और अपने कर्त्तव्यका पालन करेंगे । इत्यलं विशेषु । .