Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ ग्रन्थ-परीक्षा। सिर्फ २०-३० श्लोकोंका परस्पर हेरफेर है । और यह हेरफेर भी पहले दूसरे, तीसरे, पाँचवें और आठवें उल्लासमें ही पाया जाता है। बाकी उल्लास (नं. ४, ६, ७, ९, १०, ११, १२) बिलकुल ज्योंके त्यों एक दुसरेकी प्रतिलिपि ( नकल) मालूम होते हैं। प्रशस्तिको छोड़कर विवेकविलासकी पद्यसंख्या १३२१ और कुंदकुंदश्रावकाचारकी १२९४ है। विवेकविलांसमें अन्तिम काव्यके बाद १० पद्योंकी एक 'प्रशस्ति' लगी हुई है, जिसमें जिनदत्तसूरिकी गुरुपरम्परा आदिका वर्णन है. । परन्तु कुंदकुंदश्रावकाचारके अन्तमें ऐसी कोई प्रशस्ति नहीं पाई जाती है। दोनों ग्रंथोंके किस किस उल्लासमें कितने और कौनकौनसे पद्य एक दूसरेसे अधिक हैं, इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: उन पद्योंके नम्बर जो उन पद्योंके नम्बर कुंदकुंदा. जो विवेक विलासमें कैफियत ( Remarks ) "में अधिक अधिक है। १६३ से६९८४ से ९८ तक कुंदकुंद श्रा० के ये ७३ श्लोक दंतधा तक और १४ श्लोक ) वन प्रकरणके हैं । यह प्रकरण दोनों ग्रंथों ७० का में पहलेसे शुरू हुआ और बादको भी रहा पूर्वाध है। किस किस काष्ठकी दतान करनेसे (श्लोक) क्या लाभ होता है, किस प्रकारसे दन्तपावन करना निषिद्ध है और किस वर्णके मनुष्यको कितने अंगुलकी दतान व्यवहारमें लानी चाहिए; यही सब इन पद्योंमें वर्णित है । विवेकविलासके ये : १४ लोक पूजनप्रकरणके हैं । और किस , समय, कैसे द्रव्योंसे किस प्रकार पूजन करना चाहिए। इत्यादि वर्णनको लिए हुए हैं. .... .._ - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123