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उमास्वामि-श्रावकाचार ।
"सकलं विकलं प्रोक्तं द्विभेदं व्रतमुत्तमं ।
सकलस्य त्रिदश भेदा विकलस्य च द्वादश ॥ २५९ ॥ परन्तु सकल बतके वे १३ भेद कौनसे हैं ? यह कहींपर इस शास्त्रमें अगट नहीं किया। तत्त्वार्थसूत्रमें सकलवत अर्थात् महाव्रतके पांच भेद वर्णन किये हैं । जैसा कि निम्नलिखित दो सूत्रोंसे प्रगट है:." हिंसातस्तेयब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥ ७-१॥.
“देशसर्वतोऽणुमहती" ॥७-२॥
संभव है कि पंचसमिति और तीन गुप्तिको शामिल करके तेरह प्रकारका सकलवत ग्रंथकर्ताके ध्यानमें रहा हो । परन्तु तत्त्वार्थसूत्रमें, जो भगवान् उमास्वामिका सर्वमान्य ग्रंथ है, इन पंचसमिति और तीन गुप्तियाँको व्रतसंज्ञामें दाखिल नहीं किया है । विकलव्रतकी संख्या जो बारह लिखी है, वह ठीक है और यही सर्वत्र प्रसिद्ध है। तत्त्वार्थसूत्रमें भी १२ व्रतोंका वर्णन है, जैसा कि उपर्युक्त दोनों सूत्रोंको निम्नलिखित सूत्रोंके साथ पढ़नेसे ज्ञात होता है:
" अणुव्रतोऽगारी? ॥७-२०॥ " दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागव्रतसंपन्नश्च ॥७-२१ ॥
इस श्रावकाचारके श्लोक नं. ३२८* में भी इन गृहस्थोचित व्रतोंके. पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाबत ऐसे, बारह भेद वर्णन किये हैं। परंतु इसी ग्रंथके दूसरे पद्यमें ऐसा लिखा है कि
* " अणुव्रताानि पंच स्युनिप्रकार गुणवतम् । शिक्षाप्रतानि चत्वारि सागाराणां जिनागमे " ॥ ३२८ ॥
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