Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ग्रन्य-परीक्षा। - - ऐहिकफलानपेक्षा क्षान्तिनिष्कपटतानसूयत्वं । अविपादित्वमुदित्वे निरहंकारत्वमिति हि दातृगुणाः ॥४३॥" ये चारों पद्य श्रीअमृतचंद्राचार्यविरचित 'पुरुषार्थ सिद्धयुपायसे' उठाकर रक्खे गये हैं । इनकी टकसाल ही अलग है; ये 'आर्या' छंदमें हैं । समस्त पुरुषार्थसिद्धयुपाय इसी आर्याछंदमें लिखा गया है। पुरुषार्थसिद्धयुपायमें इन पद्योंके नम्बर क्रमशः ३०, ३६, १६८ और १६९ दर्ज हैं। ख-यशस्तिलकसे। "यदेवाङ्गमशुद्धं स्यादद्भिः शोध्यं तदेव हि । अंगुलौ सर्पदष्टायां न हि नासा निकृत्यते ॥ ४५ ॥ संगे कापालिकात्रेयीचांडालशवरादिभिः। आप्लुत्यदंडवत्सम्यग्जपेन्मंत्रमुपोपितः ॥ ४६ ॥ एकरात्रं त्रिरानं वा कृत्वा स्नात्वा चतुर्थके। दिने शुध्यन्त्यसंदेहमृतौ व्रतगताः स्त्रियः ॥४७॥ मांसं जीवशरीरं जीवशरीरं भवेन वा मांसम् । यद्वनिम्बो वृक्षो वृक्षस्तु भवेन वा निम्वः ॥ २७६ ॥ . शुद्धं दुग्धं न गोमांसं वस्तुवैचित्र्यमीहशं। विषघ्नं रत्नमाहेयं विषं च विपदे यतः ॥ २७९॥ . तच्छाक्यसांख्यचार्वाकवेदवैद्यकपर्दिनाम् । मतं विहाय हातव्यं मांसं श्रेयोर्थिभिः सदा ॥ २८४ ॥" ये सब पद्य श्रीसोमदेवसूरिकृत यशस्तिकलसे उठाकर रक्खे हुए मालूम होते हैं । इन पद्योंमें पहले तीन पद्य यशस्तिलकके छठे. आश्वासके और शेष पद्य सातवें .आश्वासके हैं। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123