Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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उमास्वामि-श्रावकाचार।।
डा-धर्मसंग्रहश्रावकाचारसे । " माल्यधूपदीपायैः सचित्तैः कोऽर्चयेजिनम् । सावधसंभवाद्भक्ति यः स एवं प्रबोध्यते ॥ १३७ ॥ जिनार्चानेकजन्मोत्थं किल्लिपं हन्ति या कृता । सा किन्न यजनाचारैर्भवं सावद्यमंगिनाम् ॥ १३८ ॥ प्रेर्यन्ते यत्र वातेन दन्तिनः पर्वतोपमाः। तत्राल्पशक्तितेजस्सु दंशकादिषु का कथा ॥ १३९ ॥ भुक्तं स्यात्प्राणनाशाय विपं केवलमंगिनाम्। जीवनाय मरीचादिसदौपधविमिश्रितम् ॥ १४॥ तथा कुटुम्बभोग्यार्थमारंभः पापकृद्भवेत् । धर्मकृद्दानपूजादौ हिंसालेशो मतः सदा ॥ १४१ ॥" ये पाचों पद्य पं० मेधावीकृत 'धर्मसंग्रहश्रावकाचारके' ९ वें अधिकारमें नम्बर ७२ से ७६ तक दर्ज हैं । वहींसे लिये हुए मालूम होते हैं।
__च-अन्यग्रंथोंके पद्य । "नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते चित् । न च प्राणिवधःस्वयंस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ॥ २६४ ॥ आसलभव्यता कर्महानिसंज्ञित्वशुद्धपरिणामाः । सम्यक्त्वहेतुरन्तर्वाह्योप्युपदेशकादिश्च ॥ २३॥ संवेगो निर्वेदो निन्दा गर्दा तथोपशमभक्ती। वात्सल्यं त्वनुकम्पा चाप्टगुणाः सन्ति सम्यक्त्वे ॥ ७० ॥"
इन तीनों पद्योंमेंसे पहला पद्य मनुस्मृतिके पांचवें अध्यायका ४८ वाँ पद्य है। योगशास्त्रमें श्रीहेमचन्द्राचार्यने इसे, तीसरे प्रकाश में, उद्धृत

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