Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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कहा कि इस टीकाका सम्पादनभार अम्पको लेना है तथा धवलादि सिद्धान्तग्रन्थोंके अनुसार इसका संशोधनसंवर्धन करना है। यद्यपि वृद्धावस्थामें मुझसे यह कार्य सम्पन्न होना कठिन लगता था तथापि पू. आ. क्र. श्रीके आशीर्वाद एवं पू. वर्धमानसागरजोके परम सहयोगसे हो इस दुरूहतम कार्यको सम्पूर्ण कर सका हूँ। इस महायज्ञके प्रमुख होता आ. क, श्री ही हैं तथा उनका मंगलमय आशीर्वाद ही मेरा सम्बल रहा।
आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी के संघमें श्री १०८ वर्धमानसागरजी हैं। आपने आचार्यश्री धर्मसागरजीसे मुनिदीक्षा ली थी। आप युवामुनि हैं एवं लौकिक शिक्षा भी ग्रहण की है अत: अंग्रेजी व गणितका भी ज्ञान है। आपकी लेखनी अतीव सुन्दर है। प्रस्तुत टीकाकी वाचनामें आप प्रमुख रहे हैं। आप ज्ञानपिपासु हैं एवं निरन्तर स्वाध्यायरत रहते हैं। पत्सित्य एवं सेवा भावना आपमें कूट-कूट कर भरी है। प्रेसकॉपी आपने ही कठोर परिश्रमसे तैयार की है एवं ग्रन्थमुद्रण में आद्यंत अपना अवर्णनीय सहयोग प्रदान किया है। मैं उभय मुनिराजका अत्यन्त कृतज्ञ हूँ कि जिनके आशीर्वाद एवं सहयोगसे यह महान कार्य पूर्ण हो सका है।
यद्यपि इस ग्रन्थका सम्पादन मैंने किया अवश्य है, किन्तु मूलमें इस ग्रन्थकी टीकाकी आर्यिका आदिमतीजी ही हैं। उनके परिश्रमके फलस्वरूप ही गोम्मटसारकर्मकाण्डकी नवीन टीका प्रकाशित हो सकी है अत: इसका पूर्ण श्रेय तो माताजीको ही है।
ग्रन्थ प्रकाशनकी समस्त व्यवस्था आ. क. श्रीके संघस्थ ब्र. लाडमलजी ने की है। आप वयोवृद्ध हैं, स्वास्थ्य भी प्रायः प्रतिकूल रहता है तथापि युवकों जैसा उत्साह रखते हैं। आप स्वयं विशेष ज्ञानी तो नहीं हैं फिर भी जिनवाणीके प्रसारके प्रति आपके मनमें लगन है इसीलिए पूर्ताचार्योंके द्वारा रचित ग्रन्धोंका शुद्ध हिन्दीमें अनुवाद अथवा टीका ग्रंथोंका प्रकाशन करानेमें आप विशेष रुचि रखते हैं। साधुओंकी वैयावृत्तिमें आप अहर्निश तत्पर रहते हैं, आप स्वयं बालब्रह्मचारी हैं। आपके सद्प्रयत्नसे ही इस विशाल ग्रन्थका इतने अल्पकालमें ही प्रकाशन सम्भव हो सका है।
बाकलीवाल प्रिन्टस, मदनगंज-किशनगढ़के मालिक श्री नेमीचन्दजी बाकलीवाल एवं उनके सुपुत्र श्री गुलाबचन्द एवं भूपेन्द्रकुमारका भी मैं आभारी हूँ कि जिन्होंने यथाशीघ्र इसग्रन्थका मुद्रण बड़ी कुशलता एवं तत्परता से किया है। यद्यपि प्रस्तुतग्रन्थमें संदृष्टियाँ बहुत अधिक होनेसे इसग्रन्धका मुद्रणकार्य कठिनसा प्रतीत होता था तथापि बड़े धैर्यसे आपने परिश्रमपूर्वक मुद्रण सम्पन्न किया अतः धन्यवादाह हैं। विज्ञेषु किमधिकम्।
अक्षयतृतीया वि. सं. २०३७
रतनचन्द जैन मुख्तार
सहारनपुर (उ.प्र.)