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द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन
विक्रमीय ग्यारहवीं सदी के आचार्य अभयदेव की सन्मतिटीका में युगपत्, अयुगपत् और अभेदवाद के पुरस्कर्ताओं के नाम का स्पष्ट उल्लेख किया है । क्रमवाद के पुरस्कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हैं, युगपत्वाद के पुरस्कर्ता के रूप में आचार्य मल्लवादी का नाम सूचित किया है और अभेदवाद के पुरस्कर्ता के रूप में आचार्य सिद्धसेन का उल्लेख किया है । किन्तु पं० सुखलालजी का कहना है कि अभी हमने उस सारे सटीक नयचक्र का अवलोकन करके देखा तो उसमें कहीं भी केवलज्ञान और केवल दर्शन के सम्बन्ध में प्रचलित वादों पर थोड़ी भी चर्चा नहीं मिली । यह बात तो सही है कि नयचक्र में केवलज्ञान और केवल - दर्शन के क्रमवाद, युगपद्वाद और अभेदवाद पर कोई चर्चा नहीं है । अतः उसके आधार पर आ० मल्लवादी का समय निर्धारण करना कठिन है, किन्तु यदि आ० मल्लवादी ने केवली के उपयोग सम्बन्धी इन वादों की कोई चर्चा की थी जो अभयदेव के सामने रही होगी । वह किसी अन्य ग्रन्थ में होगी या नष्ट हुए नयचक्र के अंश में मौजूद होगी । इसीलिए पं० सुखलालजी ने यह कल्पना की है कि आ० मल्लवादी का कोई अन्य युगपद्-वाद समर्थक छोटाबड़ा ग्रन्थ आ० अभयदेव के सामने रहा होगा। पं० जुगलकिशोर मुख्तारजी उक्त दोनों विद्वानों के मतों की आलोचना करते हुए लिखते हैं कि आ० मल्लवादी का आ० जिनभद्र से पूर्ववर्ती होना प्रथम तो सिद्ध नहीं है, सिद्ध होता भी तो उन्हें आ० जिनभद्र के समकालीन वृद्ध मानकर अथवा २५ या ५० वर्ष पहले मानकर भी उस पूर्ववर्तित्व को चरितार्थ किया जा सकता है। साथ ही साथ वे आ० अभयदेव को आ० मल्लवादी के युगपद्वाद के पुरस्कर्ता बतलाना भ्रान्त मानते हैं । साथ ही नयचक्र में भर्तृहरि का नामोल्लेख और भर्तृहरि के मत के खण्डन के आधार पर एवं चीनी यात्री इत्सिंग के यात्रा - विवरण में भर्तृहरि उल्लेख के आधार पर नयचक्र का समय ई० सन् ६०० से ६५० (वि० सं० ६५७-७०७)
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१. सन्मतितर्क टीका, पृ० ६०८.
२. ज्ञानबिन्दु प्रकरण- प्रस्तावना, पृ० ६१.
३. ज्ञानबिन्दु, पृ० ६१.
४. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद् प्रकाश, पृ० ५५०.
५.
वही, पृ० ५५१.
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