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सत् के स्वरूप की समस्या
९९ विधि-इस पक्ष के अनुसार सत् लौकिक है । यह भेद लौकिक मार्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके अनुसार लोगों के द्वारा ग्राह्य वस्तु ही सत् है । शास्त्रों द्वारा प्रतिपादित सत् प्रत्यक्षादि प्रमाण से सिद्ध नहीं होता, इतना ही नहीं प्रत्येक दर्शन में अपने-अपने मतों का प्रतिपादन और अन्य दर्शन के सिद्धान्तों का खण्डन किया गया है । अतः सत् न नित्य है न अनित्य है न तो नित्यानित्य है । सत् केवल लोकग्राह्य वस्तु स्वरूप ही है। इस विभाग में चार्वाक दर्शन का समावेश किया जा सकता है ।। विधिविधि-इस अर में व्यवहार की सिद्धि के लिए किसी एक विधि याने एक भावात्मक सत् को माना गया है । इस अर में पुरुष, काल", स्वभाव, नियति आदि एक तत्त्व को ही सत् माना है और विश्व इस सत् का विवर्त्त है। विधि-उभय-इस अर में सत् के द्वैतवाद का स्थापन किया गया है | विध्यात्मक सत् के द्वैतवाद का स्थापन किया गया है ।
विध्यात्मक सत् नित्य और अनित्यात्मक है, वह न तो केवल विध्यादि द्वादश विकल्प नियताकृतक-कृतकाकृतक कृतकत्वानेकान्तविकल्पात्मकत्वात्,
घटवत् । द्वादशारं नयचक्रम्, पृ० ८७७. १. यथालोक ग्रायमेय वस्तु । द्वादशारं नयचक्रम्, पृ० ११. २. इत्थं कल्पिताकल्पित-तथाभूतप्रत्ययानुपपत्तेरज्ञाननुविद्धमेव सर्वज्ञानम् ।
परिच्छेदार्थश्च प्रमाणव्यापारः । वही०, पृ० ११३. ३. वही० पृ० ११. ४. तद्यथा-पुरुषो हि ज्ञाता ज्ञानमयत्वात् । तन्मयं चेदं सर्वं तदेकत्वात् सर्वैकत्वाच्च भवतीति
भावः । वही, पृ० १७५, पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम् । उतामृतत्वस्येशानो
यन्नेनातिरोहति ॥ वही, पृ० १८९. ५. काल एव हि भूतानि कालः संहारसम्भवौ । स्वपन्नपि स जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥
वही, पृ० २१९. ६. तैः सर्वैः स्वभाव एव भवति इति भाव्यते । वही० पृ० २१९ ७. तन्नियमकारिणा कारणेनावश्यं भवितव्यं तेषां
तथाभावान्यथाभावाभावादिति नियतिरेवैकाकर्ती । वही० . १९४.
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