Book Title: Dvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad

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Page 219
________________ २०२ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन ४३. धर्मोत्तर प्रदीप : दुर्वेकमिश्र, सं० पं० दलसुखभाई मालवणिया, काशी प्रसाद जायसवाल अनुशीलन संस्था, पटना, द्वितीय, १९७१. ४४. नन्दीसूत्र : संपा० मुनि पुण्यविजयजी, पं० दलसुख मालवणिया, श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, १९६८. ४५. नयचक्र : संपा० पं० कैलाशचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, काशी० १९७१. ४६. न्यायकुसुमांजलि : संपा० पं० लक्ष्मण शास्त्री द्राविड़, चौखम्भा संस्कृत बुक डिपो, बनारस, १९१२. ४७. न्यायकोश : म. वासुदेव शास्त्री, प्राच्य विद्या संशोधन मन्दिर, बम्बई, १९२८. ४८. न्यायदर्शनम् : संपा० अनु० स्वामी द्वारिकादास शास्त्री, भारतीय विद्या प्रकाशनम्, वाराणसी-१, प्रथम, १९६६. ४९. न्यायदर्शनम् : आचार्य उदयवीर शास्त्री, विरजानन्द वैदिक शोध संस्थान, गाजियाबाद, १९७७. ५०. न्यायावतार : सिद्धसेन दिवाकर, टीका-सिद्धर्षिगणि, सं० पी० एल० वैद्य, जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स, बम्बई, प्रथम, १९२८. ५१. न्यायावतार वार्तिक वृत्ति : सं०पं० दलसुख मालवणिया, भारतीय विद्या भवन, बम्बई, प्रथम वृत्ति, १९४९. ५२. पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति : संशोधक-पं० मनोहरलाल, श्रीमद् राजचन्द्र ___आश्रम, अगास (गुजरात) तृतीय, वि० सं०, २०२५. ५३. प्रबन्धकोश : राजशेखर सूरि, सिंघी जैन-ग्रन्थमाला, अहमदाबाद. ५४. प्रबन्धचिन्तामणि : मेरुतुंगाचार्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, अहमदाबाद. ५५. प्रभावक चरित : श्री जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९८७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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