________________
१७७
नयविचार गया है । अव्युच्छित्ति नय का विषय, सत्ता का सामान्य और शाश्वत पक्ष होता है । सत्ता के पर्यायार्थिक पक्ष को या परिवर्तनशील-पक्ष को व्युच्छित्तनय कहा गया है, एवं एक ही वस्तु की व्याख्या इन दो दृष्टिकोणों के आधार पर दो प्रकार से की गई है । जैसे-द्रव्यार्थिक दृष्टि या अव्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा से वस्तु को शाश्वत कहा जाता है जबकि पर्यायार्थिक दृष्टि या व्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा से वस्तु को अशाश्वत या अनित्य माना जाता है। इन्हीं दो दृष्टिकोणों के आधार पर आगे चलकर सामान्य दृष्टिकोण और विशेष दृष्टिकोण की चर्चा हुई है । सन्मतिप्रकरण में अभेदगामी दृष्टिकोण को सामान्य
और भेदगामी दृष्टिकोण को विशेष कहा है२ । वस्तु का सामान्य पक्ष सामान्यतया नित्य होता है और विशेष पक्ष अनित्य होता है । इसलिए द्रव्यार्थिक दृष्टि को सामान्य या अभेदगामी दृष्टि भी कहते हैं । इसी प्रकार पर्यायार्थिक दृष्टि को विशेष या भेदगामी दृष्टि भी कहा जा सकता है ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति में नयों का एक वर्गीकरण निश्चय और व्यवहार के रूप में भी पाया जाता है । निश्चयनय वस्तु के पारमार्थिक या यथार्थ स्वरूप को या दूसरे शब्दों में कहें तो वस्तु के स्वभाव-पक्ष को अपना विषय बनाता है । इसका एक उदाहरण उसी सूत्र में इस प्रकार मिलता है-जब भगवान् महावीर से यह पूछा गया कि-"हे भगवन् ! फणित् (प्रवाही गुड) का स्वाद कैसा होता है ?" तो उन्होंने उत्तर दिया- "हे गौतम ! व्यवहारनय से तो उसे मीठा कहा जाता है किन्तु निश्चयनय से तो वह पाँचों ही प्रकार के स्वादों से युक्त है ।"
इसके अतिरिक्त प्राचीनकाल में ज्ञाननय और क्रियानय तथा शब्दनय
१. न्यायावतारवार्त्तिकवृत्ति, "प्रस्तावना," पृ० २२. २. तित्थयरवयणसंगह-विसेस पत्थार मूलवागरणी । दव्वट्ठिओ य पज्जवणओ य सेसा विकप्पा
सिं । सन्मतिप्रकरण १.३. ३. सन्मतिप्रकरण भा० १, पृ० २. ४. फाणियगुले णं भंते ! कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे पन्नत्ते ? गोयमा ! एत्थं दो
नया जवंति, तं जहा-नेच्छयियनए य वावहारियनए य । वावहारियनयस्स गोड्डे फालियगुले, नेच्छइय नयस्स पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, अटुफासे पन्नते । वियाहपण्णत्ति भा० २, पृ० ८१३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org