Book Title: Dvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 213
________________ १९६ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन नवम अध्याय-आत्मा की अवधारणा इस शोधप्रबन्ध के नवम अध्याय में हमने आत्मा के अस्तित्व और स्वरूप के सम्बन्ध में आ० मल्लवादी के द्वारा प्रस्तुत विभिन्न दृष्टिकोणों का उल्लेख किया है। साथ ही इन आत्मा सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं में क्या तार्किक असंगतियाँ हैं उनका चित्रण भी किया है । इस सम्बन्ध में आ० मल्लवादी का निष्कर्ष यह है कि एकात्मवाद और अनेकात्मवाद दोनों ही अवधारणाएँ अपने ऐकान्तिक रूप में युक्तिसंगत नहीं हैं, जैन आगम ग्रन्थों में एकात्मवाद और अनेकात्मवाद दोनों की ही स्वीकृति है । चेतना लक्षण की दृष्टि से सभी आत्माओं में एकत्व है वहीं अपनी विभिन्न पर्यायों की दृष्टि से उनकी पृथक्-पृथक् सत्ता भी है। दशम अध्याय-शब्दार्थ सम्बन्ध की समस्या प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के दशवें अध्याय में आ० मल्लवादी के द्वारा प्रस्तुत् शब्द और अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध की चर्चा की गई है । आ० मल्लवादी ने अपने ग्रन्थ द्वादशार-नयचक्र में शब्द और अर्थ में अभेद माननेवाले तथा शब्द और अर्थ में भेद माननेवाले दोनों ही पक्षों का उद्भावन किया है साथ ही उनकी समीक्षा की है । आ० मल्लवादी बताते हैं कि शब्द और अर्थ में ऐकान्तिक भेद और अभेद की अवधारणा दोनों ही युक्तिसंगत नहीं हैं । वे उनमें वाच्यवाचक भाव को स्वीकार करके कथञ्चित् भेद और कथञ्चित् अभेद की अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं । एकादश अध्याय-सत्ता की वाच्यता का प्रश्न ग्यारहवाँ अध्याय शब्द की वाच्यता सामर्थ्य या सत्ता की वक्तव्यताअवक्तव्यता की चर्चा करता है । इस अध्याय का विवेच्य बिन्दु सत्ता की निर्वचनीयता, और अनिर्वचनीयता है । इस सम्बन्ध में आ० मल्लवादी का दृष्टिकोण समन्वयात्मक ही है । वे यह स्पष्ट करते हैं कि सत्ता की अनन्तधर्मात्मकता उसकी अनिर्वचनीयता बनाती है तो दूसरी ओर भाषा की वाच्यता सामर्थ्य उसे निर्वचनीय बनाती है । सत्ता को एकान्त रूप से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226