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दशम अध्याय
शब्दार्थ सम्बन्ध की समस्या
चिन्तन भाषा पर आधारित होता है और भाषा की अभिव्यक्ति सामर्थ्य शब्द और उसके वाच्यार्थ के सम्बन्ध पर निर्भर करती है। यही कारण रहा है कि भारतीय चिन्तकों ने अति प्राचीनकाल से शब्द और उसके वाच्यार्थ के सम्बन्ध की समस्या पर विचार किया है । यह सुनिश्चित तथ्य है कि शब्द चाहे वह ध्वनि रूप में हो या वह लिखित रूप में हो किन्हीं वाच्य विषयों या वाच्यार्थ का ध्वन्यात्मक या अंकित प्रतीक होता है । शब्द की यह प्रतीकात्मकता ही उसको वाच्यार्थों के साथ जोड़ती है । किन्तु शब्द और उसके वाच्यार्थ के मध्य किस प्रकार का सम्बन्ध रहा है इस सम्बन्ध में हमें अनेक परस्पर विरोधी दृष्टिकोण उपलब्ध होते हैं ।
__ शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध में एक दृष्टिकोण बौद्धों का है-वे यह मानते हैं कि शब्द और वाच्य विषय या वाच्यार्थ में कोई भी यथार्थ सम्बन्ध नहीं है। इस दृष्टिकोण के समर्थन में बौद्ध आचार्यों का यह कहना है कि शब्द विकल्प मात्र है, उसकी उत्पत्ति विकल्प से होती है और इसलिए यह अपने अर्थ का स्पर्श करने में असमर्थ है । यद्यपि यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि शब्द में अपने अर्थ का स्पर्श करने की प्रवृत्ति नहीं है तो फिर भाषा का प्रयोजन ही क्या है ? यदि शब्द और उनके वाच्य-विषय या वाच्यार्थ में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं माना जाता है तो फिर भाषा १. विकल्पयोनयः शब्दा विकल्पाः शब्दयोनयः । - द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ५४७.
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