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द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन है । यदि हमें द्रव्य के स्वरूप को समझना है तो गुण और पर्याय के स्वरूप को समझना आवश्यक है । और इसी प्रकार गुण और पर्याय के स्वरूप को समझने के लिए द्रव्य का स्वरूप समझना आवश्यक है क्योंकि इन तीनों की सत्ता सापेक्ष है । यही कारण है कि जैनदार्शनिकों के अनुसार गुण और पर्याय से निरपेक्ष द्रव्य की और द्रव्य से निरपेक्ष गुण और पर्याय की कोई व्याख्या नहीं की जा सकती है ।
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