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कारणवाद
स्वभाववाद की समीक्षा
स्वभाववाद की समीक्षा इस प्रकार की गई है कि स्वभाव का अर्थ क्या है ? स्वभाव वस्तु विशेष है ? या अकारणता ही स्वभाव है ? या वस्तु के धर्म को ही स्वभाव माना जाता है।
१. स्वभाव को ही वस्तु विशेष माना जाए ऐसा कहने पर यह आपत्ति आती है कि वस्तु विशेषरूप स्वभाव को सिद्ध करनेवाला कोई भी साधक प्रमाण के बिना ही स्वभाव का अस्तित्व मानने पर अन्य पदार्थों का अस्तित्व भी स्वीकार करना पड़ेगा।
२. स्वभाव मूर्त है या अमूर्त । यदि मूर्त मान लिया जाए तब तो कर्म का ही दूसरा नाम होगा । और यदि अमूर्त मान लिया जाए तब तो वह किसी का कर्ता नहीं बन सकता। यथा आकाश । आकाश अमूर्त है अतः वह किसी का कारण नहीं बन सकता ।
३. अमूर्त स्वभाव को शरीरादि मूर्त पदार्थों का कारण नहीं मान सकते क्योंकि मूर्त पदार्थ का कारण मूर्त ही होना चाहिए । अमूर्त से मूर्त की उत्पत्ति संभवित नहीं हो सकती।
४. स्वभाव को अकारण रूप मान लिया जाय तब भी आपत्ति आयेगी क्योंकि, शरीरादि बाह्य पदार्थों का कोई कारण नहीं रह जायेगा और शरीरादि सब पदार्थ सर्वत्र सर्वथा एक साथ उत्पन्न होंगे। जब सभी पदार्थों को कारणाभाव समान रूप में है तब सभी पदार्थ सर्वदा सर्वत्र उत्पन्न होंगे ।
५. शरीरादि को अहेतुक मान लिया जाए तब भी युक्ति-विरोध
अतत्स्वभावात् तद्भावेऽतिप्रसंगोऽनिवारितः ।।
तुल्ये तत्र मृदः कुम्भो न पटादीत्ययुक्तिमत् ॥ शा० वा० स० स्तबक.२, १६९-१७२. १. होज्ज सभावो वत्थु निक्कारणया व वत्थुधम्मो वा।
जइ वत्थु णत्थि तओऽणुवलद्धीओ खपुष्पं व ॥ विशेषावश्यक भाष्य गा० १९१३ २. मुत्तो अमुत्तो व तओ जइ मुत्तो तोऽभिहाणओ भिन्नो। कम्म त्ति सहावो त्ति य जइ वाऽमुत्तो न कत्ता तो ॥
वही, गा० १९१६. ३. वही, गा० १९१६. ४. अह सो निक्कारणया तो खरसिंगादओ होंतु ।
वही, गा० १९१७.
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