________________
कारणवाद
या सृष्टि का एकमात्र कारण है। सामान्य रूप से यह प्रश्न सदैव उठता रहा है कि जिसकी कोई सत्ता नहीं है उससे उत्पत्ति कैसे संभव है ? उत्पत्ति का आधार तो कोई भावात्मक सत्ता ही होना चाहिए। अभाव से कोई भी सृष्टि संभव नहीं है। किन्तु इसके विरोध में यह भी कहा जाता है कि यदि हम भाव को ही एकमात्र कारण मानते हैं तो फिर नवीनता या सृष्टि का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा । वस्तुतः भावांग वह विचार-सरणी है जो सत्कार्यवाद का समर्थक है । यद्यपि इस आधार पर भाववाद के प्रसंग में वे सभी दूषण दिखाए जाते हैं जो सत्कार्यवाद के प्रसंग में प्रस्तुत किए जाते हैं। यदि सृष्टि में अथवा उत्पत्ति में कोई नवीनता न हो तो वह सृष्टि या उत्पत्ति ही नहीं कहलायेगी । नियति, स्वभाव आदि भी भाव के अभाव में संभव नहीं होते हैं। भाव शब्द की व्याख्या ही यही है कि जिससे यह होता है "यद् अयं भवति" । और इसमें निहित अयं शब्द ही स्व का सूचक है । अतः स्वभाववाद भी भाववाद पर आश्रित है । वस्तु के सद्भाव में इन भावों का अभाव होता है । अतः स्वभाव का निर्धारण भाव से ही होता है।
भाववाद को अभिव्यक्त करते हुए आचार्य मल्लवादि कहते हैं कि भाव से ही उत्पत्ति होती है । जो अभाव स्वरूप है उससे उत्पत्ति कैसे हो सकती है? भवन ही सर्ववस्तु का मूल है । भाव पदार्थ एक ही है। उसमें जो भेद किया जाता है वह उपचरित है, काल्पनिक है। भाव से ही जगत् की उत्पत्ति होती है । अत: जगत् की उत्पत्ति आदि का कारण भाव ही मानना चाहिए ।
इस प्रकार भाववाद का स्थापन किया गया है । भाववाद का कथन है कि एकमात्र भाव ही कारण है ऐसा मानने पर मिट्टी में घट उत्पन्न होने का भाव क्यों है ? पट होने का स्वभाव क्यों नहीं है ? भाववादियों के पास इस प्रकार की आपत्ति का कोई उत्तर नहीं है ।
___ भाव शब्द का अर्थ उत्पन्न होना होता है अर्थात् वस्तु केवल उत्पन्न धर्मा ही होगी, नाश तो वस्तु का धर्म नहीं होगा । अतः नाश की प्रक्रिया जो
१. द्वा० न० पृ० २३१-२३४. २. तच्च प्रत्यवस्तमितनिरवशेषविशेषणं भवनं सर्ववस्तुगर्भः सर्वबिम्बसामान्यमभिन्नं बीजम् ।
वही, पृ० २३४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org