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का किनारा भी मैंने नहीं देखा, यह भी मैं समझता हूँ, तथापि मैं जो कुछ कर पाया हूँ, यह सब मेरे पूज्य गुरुदेव आचार्यसम्राट् श्री की चरण-सेवा का ही फल है । इन चरणों में बैठ कर दीपमाला के सम्बन्ध से मैंने जो कुछ सीखा है, दीपमाला के सम्बन्ध में विद्वानों के लिखे लेखों से जो कुछ समझा है उसी को अपनी भाषा में अभिव्यक्त करने का मैंने साधारण सा प्रयास किया है । आशा है कि भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से इस पुस्तिका में जो दोष दृष्टिगोचर होंगे, मेरे सहृदय पाठक उन के लिए मुझे क्षमा करेंगे ।
प्रस्तुत पुस्तिका के सम्पादन तथा संशोधन में मेरे ज्येष्ठ गुरु भ्राता श्रद्धेय पण्डित श्री हेमचन्द्र जी महाराज का पर्याप्त सहयोग प्राप्त रहा है, तथा मेरे महामान्य योगनिष्ठ तपस्वी पण्डित श्री फूल चन्द्र जी महाराज "श्रमण' का परामर्श भी मेरे लिए मार्गदर्शक रहा है । इसके लिए मैं इन दोनों पूज्य मुनिराजों का हृदय से आभारी हूं।
जैन गुरुकुल व्यावर के भूतपूर्व प्रधान धर्माध्यापक पडित श्री शोभा चन्द्र जी भारिल्ल का सान्निध्य पाकर प्रस्तुत पुस्तिका भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से अवश्य पल्लवित एवं पुष्पित हुई है, इस सत्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती । पण्डित जी का यह सान्निध्य मेरे लिए चिर-स्मरणीय रहेगा ।
जैन स्थानक लुधियाना २०१५, कार्तिक कृष्णा १५
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-ज्ञान मुनि