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सात्त्विक और आध्यात्मिक रहा होगा ? यह साक्षात द्रष्टा और केवल - ज्ञानी के अतिरिक्त कौन कह सकता है ?
सिद्धांत है कि जो बना है, उसे नष्ट होना है, जिसका उदय हाता है वह अस्त होता है, जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन मृत्यु की गोद में सो जाना है । समय के इस परिवर्तन का प्रभाव राजा, रंक, ज्ञानी, अज्ञानी, योगी, भोगी, दुरात्मा, महात्मा, संसार के स्ाधारण पुरुष तथा संसार के महापुरुष सभी प्राणियों पर होता है । कोई भी संसारी जीव अपने को इसके प्रभाव से नहीं बचा सका है, और तो और, स्वयं भगवान महावीर भी इसके प्रभाव से न बच सके | कार्तिकी अमावस्या की काली रात्रि में भगवान निर्वाण को प्राप्त हो गये । महावीर इस पार्थिव शरीर को छोड़ कर मुक्ति में जा विराजे, जन्म-मरण के दुःखों से सदा के लिये मुक्त हो गये ।
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सूर्यास्त हो जाने पर जैसे जगतीतल पर अन्धकार अपना शासन जमा लेता है, वैसे ही सत्य-अहिंसा के दिवाकर भगवान महावीर के निर्वाण को प्राप्त हो जाने पर उन का भाव -- उद्योत (भामंडल * ) समाप्त हो गया, आत्म-ज्योति की किरणें आत्मा के साथ ही मोक्ष धाम में चली गईं । फलतः भामण्डल के अभाव के कारण द्रव्य अन्धकार बढ़ने लगा । इस अन्धकार को दूर करने के लिये भगवान के समवसरण में उपस्थित राजा
* आध्यात्मिकता की चोटियों के शिखर पर विराजमान महापुरुष के सिर के पीछे एक गोलाकार प्रकाशपुंज अवस्थित होता है, जो उनके अध्यात्म प्रकाश का एक पुण्य प्रतीक समझा गया है । वह भामंडल कहलाता है ।