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योगिता है ? मानव जगत् की सुख-शान्ति में यह पर्व किस प्रकार सहकारी प्रमाणित होता है ? मानव को महामानव बनाने के लिए क्या प्रेरणा प्रदान करता है ? दीपमाला पर्व मात्र आध्यात्मिक पर्व है या उसका समाज और राष्ट्र के साथ भी कुछ सम्बन्ध है ? प्रस्तुत प्रकरण में इन सब प्रश्नों के समाधान का प्रयत्न किया जायेगा।
दीपमाला की प्रेरणादीपमाला एक आध्यात्मिक पर्व है। इस विषय की चर्चा
*पर्व दो प्रकार के होते हैं - लौकिक अर्थात् सांसारिक और अलौकिक अर्थात् आध्यात्मिक । जिस पर्व में भौतिकता की प्रधानता हो, सांसारिक भावों का पोषण हो, खान-पान की स्वादिष्ट सामग्री जुटाई जाती हो; नृत्य-संगीत का आनन्द लिया जाता हो, यथेच्छ मनोविनोद किया जाता हो, वह लौकिक पर्व है। अलौकिक पर्व में सभी प्रवृत्तियाँ आध्यात्मिकता के नेतृत्व में होती हैं । इस में जप, तप, त्याग, वैराग्य और आत्म-चिन्तन की प्रधानता होती है । सांसारिक आमोद-प्रमोद को कोई स्थान नहीं होता।
जैन दृष्टि से दीपमाला अलौकिक पर्व है। सांसारिक राग-रंग का इससे कोई सम्बन्ध नहीं हैं। किन्तु आज इस पर्व के अवसर पर लक्ष्मी का पूजन किया जाता है, मिष्टान्न खाये जाते हैं, आतिशवाजी जलाई जाती है. अतएव यह पर्व जैन दृष्टि से अपनी अलौकिकता खो बैठा है। ऊपर-ऊपर से यह लौकिक पर्व ही बन गया है, किन्तु इसके वास्तविक मूल रूप को यदि देखा जाय तो यह निस्सन्देह अलौकिक पर्व है।