Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 99
________________ ८२ आत्मा परमात्मा में, कर्म ही का भेद है। काट दे गर कर्म को, फिर भेद है ना खेद है ॥ . कर्मवाद के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का विधाता है । ईश्वर का उस से कोई सम्बन्ध नहीं। मनुष्य के एक हाथ में स्वर्ग है और एक में नरक । वह शुभ कर्म से स्वर्ग और अशुभ कर्म से नरक को प्राप्त होता है । जो चाहे यह कर सकता है । परमात्मा भी इसके मार्ग में बाधक नहीं बन सकता । कर्मवाद तो कहता है कि हर आत्मा योग्य साधन मिलने पर परमात्मा बन सकता है।

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