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लगा। इसलिए यह पर्व “वीर-नर्वाण” के नाम से प्रसिद्ध हो गया । काल की अनेकानेक घाटियाँ पार करता हुआ वही 'वीरनिर्वाण-दिवस' आज भी मनाया जाता है । निर्वाण-दिवस मनाकर भारतीय प्रजा ज्ञात और अज्ञात रूप में अहिंसा-सत्य के महान् संदेश-वाहक भगवान महावीर के चरणों में अपनी भक्तिपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित करती है ।
__भगवान महावीर के निर्वाण-दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है-उस अाध्यामिक प्रकाश को प्राप्त करना जिसे प्राप्त करके भगवान् कृतकृत्य बने थे । कहने की आवश्यकता नहीं कि उस प्रकाश की प्राप्ति भगवान के जीवन को भली-भांति समझे बिना संभव नहीं है । भगवान के जीवन के दो पहलू है- बाह्य और आभ्यन्तर । जीवनगत घटनाएँ जीवन का बाह्य पहलू है और उनके उपदेशों से प्रतिफलित होने वाले अन्तस्तत्व को पहचानना आन्तरिक । इन दोनों पहलुओं से जीवन का परिचय प्राप्त करना ही भगवान के जीवन को समझना है । अतएव प्रस्तुत निबन्ध में संक्षेप में भगवान् महावीर के जीवन के दोनों पहलुओं का दिग्दर्शन कराया जाएगा।
भगवान् का संक्षिप्त जीवन-परिचय- .
उस युग के महाराज तथा गणराज्य के अधिपति चेटक की बहिन थीं-त्रिशला देवी । उनका विवाह ज्ञात वंशीय क्षत्रियकुलभूषण महाराज सिद्धार्थ के साथ हुआ । जैनशास्त्रों में महाराज सिद्धार्थ का उल्लेख 'सिद्धत्थे खत्तिर' और 'सिद्धस्वे राया' के नाम से उपलब्ध होता है।
ईसवी ६६८ वर्ष पूर्व, ऋतुराज बसन्त जब अपने नवयौवन की अंगड़ाई ले रहा था. नैसर्गिक सुषमा अपना शृगार