Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 64
________________ ७ पार होने की चिन्ना में हों। इठलाता हुआ यौवन भी उन्हें भोगों में नहीं फंसा सका । उनकी शक्तियाँ वस्तुतः आत्माभिमुखी थीं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार वह अविवाहित थे और श्वेताम्बर परम्परा के अन मार विवाहित हो कर भी वे कभी भोगों में आसक्त नहीं हुए। विरक्ति वर्धमान के माता-पिता का जब स्वर्गवास हुआ, उस समय उनकी अवस्था २८ वर्ष की थी। विरक्ति के जन्म--जात संस्कार संभवतः इस घटना से उभर आये और उन्होंने अपने ज्येष्ठ बन्धु नन्दिवर्धन के समक्ष दीक्षित होने का प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया । नन्दिवर्धन माता-पिता के वियोग से व्याकुल थे ही, वर्धमान के इस प्रस्ताव से उनकी मनोव्यथा की सीमा न रही। नन्दिवर्धन ने उनसे कहा-बन्धु ! जले पर नमक मत छिड़को। माता पिता के विछोह की व्यथा ही दुस्सह लग रही है, उस पर तुम भी मुझे निराधार छोड़ देने की बात कहते हो। मैं इतनी व्यथा नहीं सह सकूँगा भाई ! ___ भगवान् वर्धमान अतिशय नम्र, सौम्य, विनीत और दयालु थे । किसी को पीड़ा उपजाना तो दूर रहा, वे किसी को म्लानमुख भी नहीं देख सकते थे । नन्दिवर्धन के व्यथानिवेदन से उन्होंने अपने संकल्प में परिवतन तो नहीं किया, मगर उसे दो वर्ष के लिए स्थगित अवश्य कर दिया । इन दो वर्षों में वे गृहस्थ योगी की भाँति रहते रहे । आखिर तीस वर्ष की भरी जवानी में उन्होंने गृहत्याग किया। यह बुद्ध की भाँति पारिवारिक जनों को सोता छोड़ कर रात्रि में चुपके से नहीं निकले, प्रत्युत कुटुम्बियों से अनुमति लेकर त्यागी बने।

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