Book Title: Dipmala Aur Bhagwan Mahavir
Author(s): Gyanmuni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 68
________________ १- धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमा तवों । देवा वि तं नमंसन्ति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ (दशवै० अ० १-१) धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है । ( कौन सा धर्म ? ) अहिंसा, संयम और तप । जिस मनुष्य का मन धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। २- जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं ॥ . ( उत्तरा० अ० २३-६८) जरा और मरण के वेग वाले प्रवाह में बहते हुए जीवों के लिए धर्म ही एकमात्र द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है, और उत्तम शरण है । ३- श्रद्धाणं जो महन्तं तु, अप्पोहेओ पवज्जइ । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहा-तण्हाए पीडिओ ॥ - ( उत्तरा० अ० १६-१८) जो पथिक बिना पाथेय लिये बड़े लम्बे मार्ग को यात्रा पर जाता है, वह आगे जाता हुआ भूख और प्यास से पीड़ित हो कर अत्यन्त दुःखी होता है। ४- एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । . गच्छन्तो सो दुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ ॥ ( उत्तस० अ० १६-१६) . और जो मनुष्य बिना धर्माचरण किये परलोक जाता है.

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