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रूप परिग्रह कहलाता है। परिग्रह के अभाव को अपरिग्रह कहते हैं । अपरिग्रह के भी तीन रूप होते हैं:
१ - इच्छा को सीमित करना यह स्थूल अपरिग्रह है । २--इच्छा परिमित होते हुए भी अन्याय और अनोति से संग्रह न करना यह भी अपरिग्रह है ।
३--न्याय नीति से उपार्जित सम्पत्ति को प्रवचन - प्रभावना के लिए लगाना, राजा प्रदेशी की तरह रमणीक से रमणीक बनने के लिए अपनी आमदनी का चौथा हिस्सा दान के लिए यथाशक्य निकालना यह भी अपरिग्रह है ।
आज परिवारों में असन्तोष, समाज में क्षोभ, प्रान्तों में विप्लव, राष्ट्र में तूफान और विश्व में जो युद्ध-ज्वाला दृष्टिगोचर हो रही है, उसका मूल कारण परिग्रह है । परिग्रह को नष्ट किए बिना और अपरिग्रह की प्रतिष्ठा किए बिना समाज और राष्ट्र में शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती ।
समता
समता भगवान महावीर की असाधारण देन है । समभाव का नाम समता है। वैयक्तिक और सामाजिक स्वतंत्रता, ही समता की नाँव है । व्यक्तिगत और समाजगत उद्दण्डता और उच्छृंखलता का समता से कभी मेल नहीं हो सकता । भगवान महावीर का कहना था कि धर्म के नाम पर, शास्त्र के नाम पर और संस्कृति के नाम पर मानव-मानव के बीच में भेदभित्ति खड़ा कर देना उचित नहीं है । सभी मानव समान है । समता के हो महाप्रकाश में भगवान महावीर ने नारी को संसार की मातृशक्ति के रूप में देखा था। भगवान महावीर ने कहा था - नारी को धार्मिक अधिकारों से वञ्चित रखना एक